प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने दिल्ली में मुलाकात की, जिसका मुख्य उद्देश्य मणिपुर में पिछले साल की जातीय हिंसा के प्रभावों पर चर्चा करना था। इस महत्वपूर्ण बैठक में केवल केंद्रीय मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह ही शामिल थे, जो इस बात को दर्शाता है कि मणिपुर की स्थिति कितनी गंभीर है।
चल रहे जातीय संघर्ष और विस्थापन
मणिपुर में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष ने अब तक 220 से अधिक लोगों की जान ले ली है और लगभग 50,000 लोगों को विस्थापित कर दिया है। मेईतेई समुदाय, जो घाटियों में निवास करता है, अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होना चाहता है। दूसरी ओर, पहाड़ियों में रहने वाले आदिवासी समूह अपनी स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अतीत में संसाधनों के वितरण में असमानता और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है।
राजनीति में बढ़ता दबाव
इस बैठक के दौरान, भाजपा सरकार पर मणिपुर की समस्याओं के समाधान में असफल होने का आरोप लगाने वाले समूहों का दबाव भी बढ़ गया है। 2018 के चुनावों ने स्पष्ट कर दिया कि भाजपा को राज्य में स्थिरता स्थापित करने की आवश्यकता है। मणिपुर में कांग्रेस की जीत ने और भी राजनीतिक दांव बढ़ा दिए हैं। लक्ष्मण प्रसाद आचार्य के राज्यपाल पदभार संभालने के साथ, राज्य में शांति और स्थिरता की दिशा में और भी प्रयासों की उम्मीद की जा रही है।
शांति और स्थिरता के लिए सहयोगात्मक प्रयास
प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की इस बैठक का उद्देश्य केंद्र और राज्य के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था। इसमें तत्काल कदम उठाने के अलावा, दीर्घकालिक समाधानों पर भी चर्चा की गई जो राज्य में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में मदद करेंगे। मणिपुर में बड़ी असहमति को हल करने के लिए यह बैठक एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।
इस बैठक से क्या निष्कर्ष निकलेगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन मणिपुर के जटिल नस्लीय मुद्दों को हल करने के लिए यह बातचीत एक महत्वपूर्ण प्रयास है। सरकार को इस स्थिति को सुलझाने के लिए सभी पक्षों के हितों और चिंताओं का ध्यान रखना होगा। मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए सभी समुदायों को मिलकर काम करना होगा, एक-दूसरे को समझना होगा और सभी के लिए समावेशी विकास की दिशा में प्रयास करने होंगे।