Captain Anuj Nayyar: मां भारती का वो वीर सपूत, जिसने छुड़ा दिए थे पाकिस्तान के छक्के

Captain Anuj Nayyar

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई इंसान अपने प्यार और देश, दोनों के लिए कुर्बानी दे सकता है? ऐसी कहानियाँ हमें अक्सर फिल्मों में देखने को मिलती हैं, लेकिन असल जिंदगी में बहुत कम। आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे वीर सपूत की कहानी, जिसने अपने प्यार और देश दोनों के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। यह कहानी है कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) की, जिन्होंने महज 24 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।

बचपन से ही था देश सेवा का जुनून

28 अगस्त 1975 को दिल्ली में जन्मे कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) के माता-पिता शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े थे। उनके पिता प्रोफेसर थे और माँ दिल्ली यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में काम करती थीं। शायद इसी माहौल में पले-बढ़े अनुज में बचपन से ही देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वे हमेशा सोचते थे कि बड़े होकर देश की सेवा करेंगे। स्कूल के दिनों से ही अनुज एक मेधावी छात्र थे। उनकी रुचि खेलों और एनसीसी में भी थी। वे अपने दोस्तों के बीच अपनी बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता के लिए जाने जाते थे। उनके शिक्षक भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित थे और उन्हें एक उज्जवल भविष्य की भविष्यवाणी करते थे।

सेना में भर्ती: सपने की उड़ान

जैसे-जैसे अनुज बड़े हुए, उनका सपना भी उनके साथ बड़ा होता गया। स्कूल के बाद उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) की कठिन परीक्षा पास की और सेना में भर्ती हो गए। NDA में उनका प्रदर्शन शानदार रहा और वे जल्द ही अपने साथियों में लोकप्रिय हो गए। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अनुज को लेफ्टिनेंट के पद पर  नियुक्त किया गया। उनकी पहली पोस्टिंग राजस्थान की सीमा पर हुई, जहाँ उन्होंने अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। जल्द ही उन्हें प्रमोट करके कैप्टन बना दिया गया।

प्यार की दस्तक: जीवन में नई खुशी

सेना में अपना करियर बनाते हुए अनुज की जिंदगी में प्यार की दस्तक हुई। उनकी मुलाकात एक युवती से हुई और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों परिवारों की सहमति से उनकी सगाई हो गई और शादी की तारीख भी तय हो गई। अनुज के जीवन में सब कुछ सही दिशा में जा रहा था। एक ओर उनका करियर तेजी से आगे बढ़ रहा था, तो दूसरी ओर उन्हें अपना जीवनसाथी भी मिल गया था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

कारगिल युद्ध: वीरता की परीक्षा

1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया। भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्ध कारगिल क्षेत्र में हुआ, जो जम्मू-कश्मीर में स्थित है। इस युद्ध में कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) को द्रास सेक्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई। युद्ध में जाने से पहले अनुज ने एक बहुत ही भावुक कदम उठाया। उन्होंने अपनी सगाई की अंगूठी उतारकर अपने एक साथी को दे दी। उन्होंने कहा, “ये अंगूठी रख लो और अगर मैं वापस न आऊँ तो मेरी मंगेतर को दे देना। मुझसे ये बोझ उठाया नहीं जाता।” शायद उनके दिल में कहीं यह अहसास था कि वे शायद वापस नहीं आएंगे।

आखिरी सांस तक लड़े वीर सिपाही

6 जुलाई 1999 को कैप्टन अनुज और उनकी टीम को एक बहुत ही कठिन मिशन सौंपा गया। उन्हें पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ना था। यह एक बहुत ही खतरनाक मिशन था, क्योंकि दुश्मन ऊंचाई पर मजबूत मोर्चा संभाले हुए थे। हर कदम पर मौत का खतरा था, लेकिन अनुज का हौसला नहीं डगमगाया। उन्होंने अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए एक के बाद एक 9 दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और 3 बड़े बंकर तबाह कर दिए। उनकी इस वीरता ने दुश्मन के दिलों में खौफ पैदा कर दिया। लेकिन जब वे चौथे बंकर पर हमला कर रहे थे, तब एक दुश्मन सैनिक ने उन पर ग्रेनेड फेंक दिया। इस हमले में कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) गंभीर रूप से घायल हो गए।

शहादत: देश के लिए जान की कुर्बानी

घायल होने के बावजूद कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) ने लड़ाई जारी रखी। वे जानते थे कि अगर वे पीछे हटे तो उनकी टीम का मनोबल टूट जाएगा। इसलिए उन्होंने अपने दर्द को दबाकर आगे बढ़ना जारी रखा। लेकिन आखिरकार 7 जुलाई 1999 को कैप्टन अनुज नय्यर वीरगति को प्राप्त हो गए। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। उनकी शहादत के दो दिन बाद भारतीय सेना ने पॉइंट 4875 पर कब्जा कर लिया। कैप्टन अनुज की अद्भुत वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

एक प्रेम कहानी जो अधूरी रह गई

जब कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) का पार्थिव शरीर दिल्ली पहुंचा, तो वहाँ का दृश्य बहुत ही दिल दहला देने वाला था। उनके परिवार के साथ एक युवती भी बिलख-बिलख कर रो रही थी। वह उनकी मंगेतर थी, जिससे 10 सितंबर को उनकी शादी होनी थी। यह एक ऐसी प्रेम कहानी थी जो अधूरी रह गई। लेकिन इस अधूरी कहानी ने देश को एक वीर सपूत की कुर्बानी दी। कैप्टन अनुज ने अपने प्यार और अपने सपनों को देश की सेवा के लिए कुर्बान कर दिया।

कैप्टन अनुज नय्यर की विरासत

आज कैप्टन अनुज नय्यर (Captain Anuj Nayyar) हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी हर भारतीय के दिल में जिंदा है। उनकी वीरता और बलिदान की गाथा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। उनकी माँ ने उनकी याद में एक किताब लिखी है – ‘द्रास का टाइगर’। यह किताब न सिर्फ अनुज की वीरता की कहानी बताती है, बल्कि उनके प्यार और त्याग की भी गवाही देती है। इस किताब के माध्यम से कैप्टन अनुज की कहानी देश के कोने-कोने तक पहुंची है।

आज भी कई युवा कैप्टन अनुज नय्यर से प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती होते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि देश के लिए कुछ भी कुर्बान करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।

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