पाकिस्तानी जेवलिन थ्रोअर अरशद नदीम (Arshad Nadeem) ने पेरिस ओलंपिक 2024 में गोल्ड मेडल जीता है। उनके पिता ने बताया कि अरशद के इस सफर में गांव वालों और रिश्तेदारों ने बहुत मदद की। पहले अरशद के पास भाला खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे।
गरीबी से ओलंपिक गोल्ड तक: अरशद नदीम की अनोखी कहानी
पेरिस ओलंपिक 2024 में पाकिस्तान के लिए इतिहास रच दिया है अरशद नदीम ने। भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने न सिर्फ अपने देश को गौरवान्वित किया, बल्कि दुनिया को भी अपनी प्रतिभा से चौंका दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
गांव के लोगों का सहारा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अरशद के पिता मुहम्मद अशरफ ने बताया कि उनके बेटे के सफर में गांव के लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कहा, “हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि अरशद नदीम (Arshad Nadeem) को ट्रेनिंग दिला सकें। गांव वालों, रिश्तेदारों और अरशद के दोस्तों ने पैसे इकट्ठा किए। इन पैसों से ही वो एक शहर से दूसरे शहर जाकर प्रैक्टिस कर पाता था।”
मुश्किलों से लड़ते हुए सफलता की ओर
अरशद के रास्ते में कई रुकावटें आईं। उन्हें कोहनी, घुटने और पीठ की समस्याओं का सामना करना पड़ा। पिछले साल तो उन्हें सर्जरी भी करवानी पड़ी। लेकिन इन सब मुश्किलों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें ओलंपिक गोल्ड तक पहुंचा दिया।
दोस्ती और खेल भावना की मिसाल
इस साल की शुरुआत में अरशद को एक नए भाले की जरूरत थी। तब भारत के स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा ने सोशल मीडिया पर उनकी मदद के लिए आवाज उठाई। यह घटना दो देशों के खिलाड़ियों के बीच दोस्ती और खेल भावना की एक अच्छी मिसाल बन गई।
आज अरशद नदीम का नाम पूरी दुनिया जानती है। उन्होंने पाकिस्तान को 32 साल बाद ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाया है। उनकी इस उपलब्धि ने साबित कर दिया है कि सपने भी सच होते हैं।
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