Supreme Court: ‘हिंदुत्व’ शब्द को कट्टरवाद से जोड़ ‘भारतीय संविधानवाद’ से बदलने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने कही यह बात 

हिंदुत्व

‘हिंदुत्व’ (Hindutva) शब्‍द को लेकर एक बार फिर से विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई, इसे एक विशेष धर्म के साथ जोड़ गया और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील कर इसे बदलने की अनुरोध किया गया। एक 65 वर्षीय डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर ‘हिंदुत्व’ (Hindutva) शब्द की जगह ‘भारतीय संविधानित्व’ शब्द इस्तेमाल करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि “हिंदुत्व शब्द देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नुकसान पहुंचा रहा है।” लेकिन कोर्ट ने ‘हिंदुत्व’ को कट्टरवाद से जोड़ने के इस नए प्रयास को सिरे से खारिज कर दिया। 

कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग दिया करार

‘हिंदुत्व’ शब्द को लेकर यह याचिका डॉ. एसएन कुंद्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। कुंद्रा का कहना था कि “हिंदुत्‍व शब्द एक विशेष धर्म के कट्टरपंथियों द्वारा हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान को एक धार्मिक संविधान में बदलने की बहुत गुंजाइश छोड़ता है। कुछ धार्मिक कट्टरपंथी देश के अंदर हिंदुत्व (Hindutva) की आड़ में सांस्कृतिक आधिपत्य को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। साथ ही हिंदुत्व को राष्ट्रवाद का प्रतीक बनाने का भी प्रयास हो रहा है, जिससे हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। ‘हिंदुत्व’ शब्द का उपयोग कर एक विशेष धर्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसलिए इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी जाए।” इस याचिका को खारिज करते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हम इस तरह की याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकते हैं। इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते गए कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर नाराजगी भी जाहिर की। 

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सुप्रीम कोर्ट में पहले भी आ चुकी हैं “हिंदुत्व” (Hindutva) शब्‍द के खिलाफ याचिकाएं 

बता दें कि इससे पहले भी “हिंदुत्व” शब्‍द के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं आ चुकी हैं। यह दोनों याचिकाएं साल 1994 और साल 1995 में कोर्ट पहुंची थी। दिसंबर 1995 के मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि “हिंदू, ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू धर्म’ शब्दों का सटीक अर्थ समझाया जा सकता है और न ही इसके अर्थ को किसी संकीर्ण सीमा तक सीमित किया जा सकता है। इन शब्दों का अर्थ दूसरे धार्मिक आस्थाओं के प्रति सांप्रदायिकता को दर्शाने के लिए नहीं लगाया जा सकता है। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए साल 2016 में याचिका दायर की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। 

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