Lord Krishna and Draupadi से जुड़ी है रक्षाबंधन के शुरुआत की कहानी 

Rakshabandhan

रक्षाबंधन (Rakshabandhan), एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते की भावना और स्नेह को मनाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को सुरक्षा और खुशहाली का वादा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे हुई? इस पर्व की एक रोचक और पुरानी कहानी है जो भगवान कृष्ण और द्रोपदी (Lord Krishna and Draupadi) से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण पर्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) की शुरुआत की कहानी

रक्षाबंधन की उत्पत्ति से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है जो महाभारत के समय की है। महाभारत की प्रमुख पात्र द्रोपदी और भगवान कृष्ण (Lord Krishna and Draupadi) की यह कहानी रक्षाबंधन के महत्व को उजागर करती है। 

 द्रोपदी और भगवान कृष्ण की कहानी

द्रोपदी, पांडवों की पत्नी और एक महान, चरित्र की धनी स्त्री थीं। कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध सुदर्शन चक्र से किया, तो उनकी उंगली कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस प्रेमपूर्ण कृत्य ने श्रीकृष्ण के हृदय को गहराई से छू लिया, और उन्होंने द्रौपदी को अपनी बहन मानकर, जीवनभर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से वादा किया कि जब भी वह संकट में होंगी, उन्हें बस याद करना होगा, और वह उनकी सहायता के लिए उपस्थित होंगे।

द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को किया था याद 

जब कौरवों की राजसभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था, और दु:शासन ने उसकी साड़ी खींचने का घिनौना प्रयास किया, तब सभा में उपस्थित भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे महान व्यक्तित्व मूकदर्शक बने रहे। पांडव भी अपने कर्तव्य से चूक गए और द्रौपदी को कोई सहायता नहीं मिली। अपनी असहाय स्थिति में, द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया, उनके नाम का आह्वान किया।

श्रीकृष्ण की लीला से साड़ी कभी नहीं हुई समाप्त 

द्रौपदी की पुकार सुनकर, श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग किया और उसकी साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि दु:शासन साड़ी खींचते-खींचते थक गया और अंततः बेहोश होकर गिर पड़ा। राजसभा में साड़ी का ढेर लग गया, लेकिन श्रीकृष्ण की लीला से साड़ी कभी समाप्त नहीं हुई। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपने वचन को निभाते हुए, अपनी बहन द्रौपदी की लाज बचाई और रक्षा का धर्म निभाया।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का महत्व और परंपरा

रक्षाबंधन की इस पुरानी कहानी से यह स्पष्ट होता है कि भाई-बहन के रिश्ते में स्नेह और सुरक्षा का आदान-प्रदान महत्वपूर्ण होता है। रक्षाबंधन पर राखी बांधने की परंपरा उसी दिन से शुरू हुई जब द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को राखी बांधकर अपनी सुरक्षा की कामना की थी और भगवान कृष्ण ने उसे यह विश्वास दिलाया था कि वह हमेशा उसकी रक्षा करेंगे।

रक्षाबंधन की इस कहानी के माध्यम से मिलता है यह संदेश 

रक्षाबंधन की इस कहानी के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि भाई-बहन के रिश्ते में विश्वास और सुरक्षा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह पर्व केवल एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते की भावनात्मक और सांस्कृतिक गहराई को भी दर्शाता है। 

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के पर्व का आधुनिक संदर्भ

आज भी, रक्षाबंधन का पर्व इसी भावना के साथ मनाया जाता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनसे प्यार, सुरक्षा और समर्थन की आशा करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी सुरक्षा का वादा करते हैं। इस प्रकार, रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते की मिठास और मजबूती को बढ़ावा देता है।

इस प्रकार, भगवान कृष्ण और द्रोपदी (Lord Krishna and Draupadi) की कहानी से जुड़ी यह पारंपरिक मान्यता रक्षाबंधन के पर्व को धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती है। यह न केवल एक रस्म है, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते की गहराई और स्नेह को भी उजागर करती है।

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