जीवन से जुड़े कष्टों को दूर करने के लिए करें संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत

Kojagari Ganesh Chaturthi

हिंदू धर्म में गणेश जी को विघ्नहर्ता और शुभता के देवता माना जाता है। हर शुभ कार्य की शुरुआत गणपति की पूजा से ही की जाती है ताकि सभी बाधाओं का नाश हो और सुख-समृद्धि बनी रहे। संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत एक ऐसा पर्व है जो भगवान गणेश को समर्पित होता है। यह व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है और खास तौर पर जीवन से जुड़े कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है। ‘संकष्टी’ का अर्थ है संकटों को हरने वाला, और इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। 

संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व

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संकष्टी गणेश चतुर्थी का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। इसे करने से जीवन में आने वाली विभिन्न प्रकार की परेशानियों, जैसे आर्थिक तंगी, शारीरिक कष्ट, पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव को दूर करने की मान्यता है। इस व्रत को रखने वाले भक्त भगवान गणेश से संकटों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं, और उन्हें यह विश्वास होता है कि उनके जीवन में शांति और सुख-समृद्धि का वास होगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान गणेश की पूजा करता है, उसे सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

 व्रत की विधि और पूजा का तरीका

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संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन भक्त प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा की शुरुआत करते हैं। इस दिन खासतौर पर व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत खोलते हैं। पूजा के समय भगवान गणेश को लाल फूल, दूर्वा, मोदक और फल अर्पित किए जाते हैं। गणपति की आरती गाकर उनकी स्तुति की जाती है और उनसे जीवन के कष्टों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। संकष्टी गणेश चतुर्थी की पूजा में गणेश जी के 108 नामों का जाप करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। 

 चंद्रमा को अर्घ्य देने का महत्व

इस दिन चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है। शाम के समय जब चंद्रमा उदित होता है, तब व्रती चंद्रमा को जल अर्पित करते हैं और उसके बाद व्रत का समापन किया जाता है। चंद्रमा के दर्शन के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है, और यह प्रक्रिया संकष्टी व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। चंद्रमा को जल अर्पित करने से व्यक्ति के मन की शांति और समृद्धि बनी रहती है और उसे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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संकष्टी गणेश चतुर्थी के लाभ

इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। मुख्य रूप से यह व्रत जीवन के सभी प्रकार के कष्टों और बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है। साथ ही, इसका पालन करने से मानसिक शांति, पारिवारिक सौहार्द, और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। 

1. विघ्नों का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और उनके व्रत से जीवन में आने वाले हर प्रकार के विघ्नों का नाश होता है।

2. स्वास्थ्य लाभ: जो व्यक्ति शारीरिक कष्टों से जूझ रहा हो, उसके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी है। गणेश जी की कृपा से शरीर के रोगों का निवारण होता है।

3. आर्थिक समृद्धि: आर्थिक तंगी या अन्य वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे व्यक्ति को संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने से धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

4. मानसिक शांति: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मानसिक तनाव और चिंता से ग्रस्त लोग इस व्रत से विशेष लाभ प्राप्त करते हैं। गणेश जी की पूजा से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।

5. पारिवारिक समस्याओं का समाधान: संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत करने से परिवार में सुख-शांति का वास होता है और पारिवारिक कलह और विवाद समाप्त होते हैं।

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