महर्षि वाल्मीकि जी, जिन्हें ‘आदि कवि’ के रूप में सम्मानित किया गया

महर्षि वाल्मीकि जी

महान खगोलशास्त्री थे महर्षि वाल्मीकि 

महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर संस्कृत के इस आदि कवि तथा ‘रामायण के रचियता के बारे में यह जान कर आपको हैरानी होगी कि महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलशास्त्री थे। खगोलशास्त्र पर उनकी पकड़ उनकी कृति ‘रामायण’ से सिद्ध होती है। आधुनिक साफ्टवेयरों के माध्यम से यह सिद्ध हो गया है कि रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भ शब्दश: सही हैं। 

भारतीय वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान की पूर्व निदेशक सुश्री सरोज बाला ने इस संदर्भ में 16 साल के शोध के बाद एक पुस्तक ‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’  में कई दिलचस्प तथ्य उजागर किए हैं। आईए इनमें से कुछ पर एक दृष्टि डालते हैं। 

यदि  हम  महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को ध्यान से पढ़ें तो पता चलता है कि इस ग्रंथ में श्रीराम के जीवन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं के समय पर आकाश में देखी गई खगोलीय स्थितियों का विस्तृत एवं क्रमानुसार वर्णन है। 

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ध्यान रहे कि नक्षत्रों व ग्रहों की वही स्थिति 25920 वर्षों से पहले नहीं देखी जा सकती है। सरोज बाला की पुस्तक के अनुसार उन्होंने प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर —संस्करण 4.1 का  उपयोग किया क्योंकि यह साफ्टवेयर समय, तारीख और स्थान के साथ—साथ उच्च रिज़ोल्यूशन वाले आकाशीय दृश्य प्रदान करती है। 

इसी प्रकार शोधकर्ताओं ने महर्षि वाल्मीकि की रामायण के खगोलीय संदर्भों की सत्यता को मापने के लिए स्टेलेरियम साफ्टवयेर का भी उपयोग किया। इसके इस्तेमाल से भी यही पता चला कि रामायण में वर्णित ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति, तत्कालीन आकाशीय स्थिति व खगोल से जुड़ी सभी जानकारियां अक्षरश: सत्य थीं। जो वर्णन रामायण में जिस वर्ष, तिथि और समय पर दिया गया है, उन्हें इन साफ्टवेयर्स में डालने पर हूबहू वैसे ही तस्वीरें सामने आती हैं। 

आप चाहें तो आप भी इसे जांच सकते हैं। स्टेलेरियम एक ओपन सोर्स साफ्टवेयर है , मतलब इसे निशुल्क इंटरनेट से डाउनलोड किया जा सकता है। 

महर्षि वाल्मीकि जी

सरोज बाला के अनुसार, स्काई गाइड साफ्टवेयर भी स्टेलेरियम साफ्टवेयर द्वारा दर्शाए गए इन क्रमिक आकाशीय दृश्यों की तिथियों का पूर्ण समर्थन करता है। इन दोनों साफ्टवेयरों के परिणाम एक जैसे होने के कारण पाठक अपने मोबाइल, आइपैड, लैपटॉप यां कंप्यूटर पर इस पुस्तक में दिए गए आकाशीय दृश्यों की तिथियों का सत्यापन कर सकते हैं।   

‘प्लेनेटेरियम सिमुलेशन साफ्टवेयरों का उपयोग करते हुए रामायण के संदर्भों की इन क्रमिक खगोलीय तिथियों का पुष्टिकरण आधुनिक पुरातत्व विज्ञान, पुरावनस्पति विज्ञान, समुद्र विज्ञान, भू—विज्ञान, जलवायु विज्ञान, उपग्रह चित्रों और आनुवांशिकी अध्ययनों ने भी किया है।’

बाल्मीकि रचित रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भ  कितने सटीक थे, इसका एक उदाहरण श्री राम के जन्म के समय के वर्णन से मिलता है। जब श्रीराम का जन्म हुआ तो  महर्षि वाल्मीकि ने उस समय के ग्रहों, नक्षत्रों , राशियों का इस प्रकार वर्णन किया है: 

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट् समत्ययु:

ततश्रच द्वादशे मसो चैत्रे नावमिके  तिथौ ।। 

नक्षत्रे दितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पुंचसु।

ग्रहेषु कर्कट लगने वाक्पताविन्दुना सह ।।

प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम।

कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षणंसंयुतम।।

इसका अर्थ है कि जब कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया उस समय सूर्य, शुक्र, मंगल, शनि और बृहस्पति, ये पांच ग्रह अपने—अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। यह वैदिक काल से भारत में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति बताने का तरीका रहा है। बिना किसी परिवर्तन के आज भी यही तरीका भारतीय ज्योतिष का आधार है।

भारतीय राजस्व सेवा के श्री पुष्कर भटनागर ने “प्लैनेटोरियम” नामक सॉफ्टवेयर अमेरिका से प्राप्त किया था। इसका उपयोग सौर/चंद्र ग्रहण और पृथ्वी से अन्य ग्रहों की दूरी और स्थान की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। उन्होंने महर्षि वाल्मिकी द्वारा बताई गई ग्रहों की स्थिति के बारे में प्रासंगिक विवरण दर्ज किया और बहुत ही रोचक और ठोस परिणाम प्राप्त किए, जो श्री राम के जन्म से लेकर 14 साल के वनवास के बाद उनके अयोध्या वापस आने की तारीख तक की महत्वपूर्ण तिथियों को लगभग निर्धारित करते हैं।

जो वर्णन रामायण में है यदि वही डाटा साफ्टवेयर में डाला जाए तो  जो दृश्य सामने आता है उसमें इन सभी खगोलीय विन्यासों को अयोध्या के अक्षांश और रेखांश —27 डिग्री उत्तर और 82 डिग्री पूर्व— से 10 जनवरी  5114 वर्ष ईसा पूर्व को दोपहर 12 से 2 बजे के बीच के समय में देखा जा सकता था। यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। यह बिल्कुल वही समय व तिथि है जिसमें समस्त भारत में आज तक रामनवमी मनाई जाती है। ध्यान रहे कि ऐसे खगोलीय विन्यास पिछले 25000 सालों में नहीं बन पाए हैं जैसे श्रीराम के जन्म के समय थे जो लगभग 7000 साल पहले हुआ था। 

यह केवल एकमात्र उदाहरण है। ऐसे सैंकडों वर्णनों को रामायण से लेकर साफ्टवेयर में डालने से पता चला है कि हर वर्णन इसी प्रकार खगोलशास्त्र की कसौटी पर खरा उतरता है। श्री राम के वनवास की तिथि: वाल्मिकी रामायण के अयोध्या कांड (2/4/18) में उल्लेख है कि दशरथ श्री राम को राजा बनाना चाहते थे क्योंकि सूर्य, मंगल और राहु ने उनके नक्षत्र को घेर लिया था और सामान्यतः ऐसे ग्रह विन्यास के अंतर्गत जो राजा बनता है वह या तो मर जाता है या षड्यंत्रों का ग्रास बन जाता है।

दशरथ की राशि मीन और नक्षत्र रेवती था।

सॉफ्टवेयर से यह ग्रह विन्यास 5 जनवरी, 5089 ईसा पूर्व को था, और आश्चर्यजनक रूप से वाल्मीकि रामायण के अनुसार इसी दिन श्री राम ने 14 वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या छोड़ा था। इस प्रकार उस समय उनकी आयु 25 वर्ष (5114-5089) थी।

वाल्मिकी रामायण में ऐसे कई श्लोक हैं जो बताते हैं कि जब श्रीराम वनवास के लिए अयोध्या से निकले तब उनकी आयु 25 वर्ष थी। वाल्मिकी रामायण में श्री राम के वनवास के 13वें वर्ष के उत्तरार्ध में खरदूषण से युद्ध के समय के सूर्य ग्रहण का उल्लेख है। यह भी उल्लेख है कि वह अमावस्या का दिन था और मंगल ग्रह मध्य में था। जब यह डेटा दर्ज किया गया, तो सॉफ़्टवेयर ने संकेत दिया कि 7 अक्टूबर, 5077 ईसा पूर्व, (अमावस्या दिवस) को सूर्य ग्रहण था जिसे पंचवटी से देखा जा सकता था।

ग्रह विन्यास भी वही था – बीच में मंगल था, एक तरफ शुक्र और बुध थे और दूसरी तरफ सूर्य और शनि थे।

विभिन्न अन्य अध्यायों में वर्णित ग्रह विन्यास के आधार पर, रावण के वध की तिथि 4 दिसंबर, 5076 ईसा पूर्व निकलती है, और श्री राम ने 2 जनवरी, 5075 ईसा पूर्व को 14 वर्ष का वनवास पूरा किया था, और वह दिन भी नवमी थी। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की. इस प्रकार श्री राम 39 वर्ष (5114-5075) की आयु में वापस अयोध्या आये थे।

एक शोधकर्ता डॉ. राम अवतार ने वनवास के दौरान श्री राम द्वारा देखे गए स्थानों पर शोध किया, और क्रमिक रूप से उन स्थानों पर गए, जैसा कि वाल्मिकी रामायण में श्री राम द्वारा अयोध्या से शुरू होकर वह सीधे रामेश्वरम तक जाने का वर्णन है

उन्हें 195 स्थान मिले जहां आज भी श्री राम और सीता के जीवन से संबंधित रामायण में वर्णित घटनाओं से जुड़े स्मारक मौजूद हैं इनमें तमसा ताल (मंदाह), श्रृंगवेरपुर (सिंगरौर), भारद्वाज आश्रम (इलाहाबाद के पास स्थित), अत्रि आश्रम, शामिल हैं। मार्कंडेय आश्रम (मारकुंडी), चित्रकूट, पमाकुटी (गोदावरी के तट पर), पंचवटी, सीता सरोवर, नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर में राम कुंड, शबरी आश्रम, किष्किंधा (ग्राम अन्नागोराई), धनुषकोटि और रामेश्वर मंदिर।

वाल्मिकी रामायण में उल्लेख है कि श्री राम की सेना ने रामेश्वरम और लंका के बीच समुद्र पर एक पुल का निर्माण किया था। इस पुल को पार करने के बाद श्री राम की सेना ने रावण को हराया था। कुछ समय पूर्व नासा ने इंटरनेट पर एक मानव निर्मित पुल की तस्वीरें डालीं थी , जिसके खंडहर रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में डूबे हुए हैं।

श्रीलंका सरकार ने सीता वाटिका को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की इच्छा व्यक्त की थी। श्रीलंकाई लोगों का मानना ​​है कि यह अशोक वाटिका थी जहां रावण ने सीता को (5076 ईसा पूर्व)।बंदी बनाकर रखा था

इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि राम को मिथक नहीं, न ही रामायण कोई कल्पना की उड़ान है। श्रीराम सूर्यवंशी राजकुल के 64वें यशस्वी शासक थे। महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे।  आदिकवि वाल्मीकि ने  अयोध्या के राजा के रूप में श्रीराम का राज्यारोहण होने के बाद रामायण की रचना आरंभ कर दी थी। इस ग्रंथ में श्रीराम का जीवनचरित संस्कृत के 24000 श्लोकों के माध्यम से दिया गया है। रामायण में उत्तकांड के अलावा छ: और अध्याय हैं: बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड तथा युद्धकांड|लूसियाना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुभाष काक ने अपनी पुस्तक द एस्ट्रोनॉमिकल कोड ऑफ द ऋग्वेद में श्री राम के 63 पूर्वजों का भी उल्लेख किया है जिन्होंने अयोध्या पर शासन किया था जिसमे  श्री राम, राजा दशरथ, राजा अज, राजा रघु, राजा दिलीप इत्यादि प्रमुख हैं।

महर्षि वाल्मिकी को शूद्र वर्ग (अनुसूचित जाति) का बताया गया है, फिर भी सीता अयोध्या से निर्वासित होने के बाद उनकी दत्तक पुत्री के रूप में उनके साथ रहीं।

लव और कुश उन्हीं के आश्रम में उनके शिष्य बनकर पले-बढ़े। हमें इस तथ्य पर गर्व होना चाहिए कि वाल्मिकी शायद पहले महान खगोलशास्त्री थे और ग्रह विन्यासों का उनका अध्ययन समय की कसौटी पर खरा उतरा है। यहां तक ​​कि नवीनतम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर्स ने भी उनकी खगोलीय गणनाओं की पुष्टि की है, जिससे सिद्ध होता है कि उन्होंने कोई त्रुटि नहीं की।

रामायण की एक पात्र शबरी को भील जनजाति से संबंधित बताया जाता है जिसके जूठे बेर राम ने खाए ।  श्री राम की जिस सेना ने रावण की अजेय सेना को हराया ,उसका गठन मध्य और दक्षिण भारत के विभिन्न आदिवासियों द्वारा किया गया था।

श्री राम के जीवन से जुड़े तथ्य, घटनाएँ और अन्य सभी विवरण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आदि सहित उन सभी भारतीयों की साझी विरासत हैं जो दूसरे मत पंथ संप्रदायों में धर्मांतरित हो चुके हैं क्योंकि पैगंबर मोहम्मद का जन्म 1,400 साल पहले, ईसा मसीह का जन्म 2,000 वर्ष पूर्व और गौतम बुद्ध का जन्म 2,600 साल पहले हुआ था, जबकि राम का जन्म 7,000 साल पहले हुआ था।

महर्ष वाल्मीकि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर वैज्ञानिक प्रमाणों की यह मुहर उन इतिहासकारों और अन्य सभी बुद्धिजीवियों के लिए एक दर्पण है जो भारतीय इतिहास को मिथक कहते हैं, आर्य आक्रमण सिद्धांत और मूल निवासी और बाहरी जैसी सामाजिक विद्वेष भरी बात की कपोल कल्पना गढ़ते हैं, शूद्रों से शिक्षा के अधिकार से वंचना की बात करते हैं।

आज आवश्यकता है, उन सभी साक्ष्यों को एकत्र करने, खोदने, खोज निकालने और उनका विश्लेषण करने की, जो प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अधिक प्रकाश डाल सकें।

आवश्यकता है, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इन तथ्यों पर ध्यान देने और ऐसा वातावरण बनाने की जो हमारे युवा और शिक्षित युवाओं को अनुसंधान करने और प्राचीन भारतीय सभ्यता और ज्ञान के बारे में सच्चे तथ्य खोजने के लिए प्रेरित करे और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करे जिससे वे  अपने शोध के के परिणामों को और निडर होकर और गर्व की भावना के साथ लोगों के सामने रख सकें

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