Part 02: जानिए अखंड भारत संकल्प दिवस (Akhand Bharat Sankalp Diwas) का इतिहास 

Akhand Bharat Sankalp Diwas

अखंड भारत संकल्प दिवस के Part 01 में विभाजन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी आपने पढ़ा। अब आगे जानेंगे इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के असफल प्रयोगों को। 

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान एक असफल प्रयोग 

  • बलूचिस्तान में स्थित स्टेट ऑफ कलात के शासक ने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को फोन करके भारत में विलय की इच्छा प्रकट की थी। लेकिन ब्रिटिश संसद के हिंदुस्तान स्वतंत्रता अधिनियम की धाराओं के अनुसार स्टेट ऑफ कलात की सीमा भारत से जुड़ी नहीं होने के कारण यह विलय असंभव था, ऐसा कहकर वल्लभभाई ने अपनी असमर्थता व्यक्त की थी। इस पर अगर पूर्व पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान हो सकते हैं तो पूर्व हिंदुस्तान और हम पश्चिम हिंदुस्तान क्यों नहीं हो सकते, ऐसा तर्क उस शासक ने दिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इसलिए यह प्रस्ताव अस्तित्व में नहीं आ सका। बलूचिस्तान मन से कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था। यह उपरोक्त उदाहरण के साथ आज बलूचिस्तान में चल रहे सशस्त्र स्वतंत्रता आंदोलन तक साबित करता है।
  • कांग्रेस ने विभाजन को मंजूरी दी है यह जानकर तब के प्रभावी पठान नेता खान अब्दुल गफ्फार खान उर्फ सीमांत गांधी दिल्ली आए और आपने किससे पूछकर विभाजन को मंजूरी दी? आपने हमें भेड़ियों के सामने डाल दिया है (You have thrown us to the wolves)  ऐसा महात्मा गांधी को सुनाकर पेशावर चले गए और फिर कभी महात्मा गांधी से नहीं मिले।
  • 1930 के दशक में सिंध प्रांत को मुंबई इलाके से अलग करने के षड्यंत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले और 1943 में सिंध की विधानसभा में पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव पेश करने वाले सिंध के नेता गुलाम मुर्तजा सैयद पाकिस्तान की संपूर्ण व्यवस्था से इतने निराश हो गए कि, अपने जीवन के उत्तरार्ध में 1972 से स्वतंत्र सिंधू देश का जोरदार समर्थन करने लगे। पाकिस्तान के निर्माण में योगदान देने की सजा के रूप में अल्लाह ने मुझे यह अराजक पाकिस्तान देखने के लिए दीर्घायु दिया है। यह उदासी की भावना 91 वर्ष की आयु में मृत्यु से पहले उन्होंने व्यक्त की थी। आज भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अलग सिंधू देश के लिए “जिये सिंध” नामक एक बड़ी आंदोलन चल रही है।
  • एक उपासना पद्धति, एक धर्मग्रंथ, एक भाषा (उर्दू) के आधार पर खड़ा हुआ इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान अपनी स्थापना के 25 वर्षों के भीतर बंगाली भाषाई अस्मिता के सामने ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। 1971 में पूर्व पाकिस्तान में बांग्लादेश के निर्माण के लिए हुई खूनी क्रांति यह धर्माधारित निर्माण की नींव की कमजोरता और खोखलापन साबित करता है।
  • अपने वालों का देश कहकर आज के भारत से पाकिस्तान गए मुहाजिर आज भी पाकिस्तान के समाज जीवन में एकरूप नहीं हो सके हैं। पाकिस्तान की जनता उन्हें निचले दर्जे के नागरिक और गले के बोझ समझती है। मुहाजिरों की पाकिस्तान में पहचान “भूखे नंगे मुहाजिर” के रूप में ही है। पंजाबी, सिंधी, बलूच और पश्तुनी पाकिस्तानियों के साथ मुहाजिरों की हमेशा मारपीट होती रहती है।
  • जब पाकिस्तान के टुकड़े होंगे तब पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के साथ मुहाजिरों को भी कराची हैदराबाद (पाकिस्तान) क्षेत्र का अलग मुहाजिरिस्तान देना पड़ेगा, ऐसी धमकी ये मुहाजिर पाकिस्तान सरकार को हमेशा देते रहते हैं।

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान की पहचान का संकट 

  • हम कौन हैं? यह सवाल पाकिस्तान को हमेशा सताता है।
  • पाकिस्तान अपने मूल पुरुष मोहम्मद बिन कासिम को मानता है। उनकी सरकारी वेबसाइट पर ऐसा स्पष्ट उल्लेख किया गया था। उनके अनुसार मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला कर जिस दिन पहले 13 मूल निवासियों को अंधकार युग (जाहिलियत) से इस्लाम के प्रकाश में लाया, उसी दिन पाकिस्तान के निर्माण की पहली ईंट रखी गई थी। 14 अगस्त 1947 को केवल इसका प्रकटीकरण हुआ। लेकिन वही पाकिस्तान उत्खनन में अपने पैरों के नीचे मिले 5000 साल पहले के सभ्य, संपन्न, वैभवशाली हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नगरों को अपने पूर्वज अंधकार युग में कैसे थे, इसका समर्थन नहीं कर सकता और इस ऐतिहासिक सच्चाई को नकार भी नहीं सकता।
  • मैं कौन हूं? इस प्रश्न का उत्तर खोजते समय आज का सामान्य पाकिस्तानी सिंधी मुसलमान नागरिक “75 वर्षों से मैं पाकिस्तानी हूं, 750 वर्षों से मैं मुसलमान हूं और 7500 वर्षों से मैं सिंधुपुत्र हूं” इस निष्कर्ष पर पहुंचता है, तब उसकी पाकिस्तानी होने की भ्रांति टूट जाती है।
  • खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के पश्तूनों ने न ही ब्रिटिश शासन को माना, न ब्रिटिशों द्वारा खींची गई ड्यूरंड लाइन को माना, न रूसी वर्चस्व को माना और न ही पाकिस्तान की सत्ता को। वे खुद को पठान वंश के अर्थात पश्तून समझते हैं। पाकिस्तानी के रूप में उनका कोई वैचारिक या भावनात्मक जुड़ाव नहीं है।
  •  “अपने वालों का देश” कहकर आज के भारत से पाकिस्तान गए मुहाजिर उस समय पाकिस्तान की राजधानी रहे कराची और उसके पास स्थित हैदराबाद शहर में बसे। मुहाजिरों की भीड़ ने इन दोनों शहरों की जनसंख्या अनुपात बदल दिया, वहां के मूल निवासी मुसलमान सिंधी समाज एक रात में अल्पसंख्यक हो गए। लेकिन इन उर्दू भाषी मुहाजिरों को पाकिस्तान ने आज तक स्वीकार नहीं किया। वहां उनकी जो दुर्दशा चल रही है, उसके कारण विभाजन के समय पाकिस्तान के निर्माता और भाग्यविधाता होने का घमंड करने वाले मुहाजिर आज बेबस होकर सिंधी समाज को अपना बनाने के लिए सिंध को “सिंधमाता” कह रहे हैं। हिंदुस्तान में रहते हुए विभाजन से पहले भारत माता की जय या वंदे मातरम् कहने में हिचकिचाने वाले “एहसान फरामोश” मुहाजिर आज सिंध माता की जयकार कर गला सुखा रहे हैं।

पाकिस्तान का हर समाजिक घटक पहचान संकट से ग्रस्त है। पाकिस्तान की संरचना अपने आंतरिक विरोधाभासों के कारण कभी भी गिर सकती है। अखंड भारत के इतिहास के पार्ट 3 में जानेंगे अखंड भारत की आवश्यकता क्यों है।

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