गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। उसने ईशा फाउंडेशन की जांच (Isha Foundation Investigation) पर रोक लगा दी। यह फाउंडेशन जाने-माने आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव का है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह खुद इस मामले को देखेगा। यह फैसला तब आया जब ईशा फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के एक पहले के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश से शुरू हुई जांच
ईशा फाउंडेशन की जांच (Isha Foundation Investigation) का मामला कैसे शुरू हुआ? यह सब 30 सितंबर को मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश से शुरू हुआ। हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया था कि वह फाउंडेशन की जांच करे। कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि फाउंडेशन लोगों को जबरदस्ती रोक कर रखता है। इस आदेश के बाद मंगलवार को 150 पुलिस वाले फाउंडेशन में घुस गए और वहां की तलाशी ली। यह कार्रवाई कोयंबटूर के थोंडामुथुर में स्थित ईशा फाउंडेशन के आश्रम में की गई।
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सुप्रीम कोर्ट का रुख और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने साफ कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाती है। इसका मतलब है कि अब पुलिस ईशा फाउंडेशन की जांच नहीं कर सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह खुद इस मामले को देखेगा। यानी अब यह केस हाईकोर्ट से सीधे सुप्रीम कोर्ट में आ गया है।
महिलाओं की गवाही: सच्चाई का खुलासा
इस मामले में दो महिलाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने उन दोनों से सीधे बात की। महिलाओं ने कोर्ट को बताया कि “वे अपनी मर्जी से फाउंडेशन में रह रही हैं।” उन्होंने साफ कहा कि “उन्हें कोई जबरदस्ती नहीं रोक रहा है। वे जब चाहें, आश्रम छोड़कर जा सकती हैं।” कोर्ट ने इस बात को गंभीरता से लिया। इन महिलाओं की गवाही से साफ हो गया कि आरोप सही नहीं थे।
हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर कई सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि “हाईकोर्ट ने बिना किसी ठोस कारण के जांच का आदेश दिया। ऐसा करना कानूनी तौर पर सही नहीं है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि “यह धार्मिक आजादी का मामला है, इसलिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने जल्दबाजी में फैसला लिया।
पुलिस और सरकार को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन की रक्षा की (Supreme Court protected Isha Foundation) और पुलिस को भी कई निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अब कोई और कार्रवाई न करे। पुलिस को अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट में देनी होगी। कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से भी जवाब मांगा है। सरकार को बताना होगा कि उसने क्या कार्रवाई की और क्यों की। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह 18 अक्टूबर को फिर से इस मामले की सुनवाई करेगा।
मामले की जड़: एक पिता की चिंता
यह सारा मामला एक पिता की शिकायत से शुरू हुआ। एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस. कमराज ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने कहा था कि उनकी दो बेटियां, जो 42 और 39 साल की हैं, ईशा फाउंडेशन में फंसी हुई हैं। उनका आरोप था कि फाउंडेशन ने उनकी बेटियों को “ब्रेनवॉश” कर दिया है। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने उन बेटियों से बात की, तो सच्चाई सामने आ गई। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है। इसने ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत दी है। साथ ही, यह फैसला धार्मिक आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए भी बहुत अहम है। आने वाले दिनों में यह मामला और भी चर्चा में रह सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे की सुनवाई में क्या होता है।
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