Shahi Snan history: महाकुंभ में हिंदू साधु-संत क्यों करते हैं पेशवाई और शाही स्नान? जानें इतिहास

Hindu saints and Kumbh

13 जनवरी से महाकुंभ का शुभारंभ हो गया है। पूरे विश्व से श्रद्धालु प्रयागराज की संगम नगरी पहुंचे हैं। भव्य और दिव्य महाकुंभ के दौरान अक्सर हम शाही स्नान के बारे में सुनते हैं। शाही स्नान में सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि साधु और सनातन का शाही से क्या लेना देना। हिंदू साधु संत पेशवाई क्यों करते हैं मोहमाया छोड़ चुके साधुओं को शाही और राजशी क्या ही मतलब। आखिर कुंभ में साधु-संतों को शाही स्नान (Shahi Snan history) कब मिला? क्या महाकुंभ में अखाड़ों के जिस स्नान को अमृत स्नान कहा जा रहा है, वो स्नान क्या किसी मुस्लिम शासक न दिया है? हम में से अधिकतर लोगों को यही लगता है कि इसका संबंध मुगलों से है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। विशेषज्ञों की माने तो इन शब्दों का संबंध मराठा पेशवा से है। बता दें कि उन्होंने ही शाही स्नान और पेशवाई करने की व्यवस्था दी थी। 

कुंभ के प्रमुख पर्वों पर जुलूस बनाकर उसी तरह तड़क भड़क और सज-धज कर (Shahi Snan history) निकाला करते थे। 

ऐसा नहीं है कि यह आज से हो रहा है। उससे पहले भी हिंदू साधु-संतों ने अपनी ताकत दिखाने हेतु कुंभ के प्रमुख पर्वों पर जुलूस बनाकर उसी तरह तड़क भड़क और सज-धज (Shahi Snan history) कर निकाला करते थे। उनके जुलूस किसी राजा महाराजा से कम नहीं होते थे। जिस तरह उस जमाने में राजा-महाराजा युद्ध के समय अपनी ताकत का प्रदर्शन करते थे ठीक उसी तरह साधु-संत भी अपनी ताकत का प्रदर्शन करते थे। मान्यता है कि जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने हिंदू समुदाय को सशक्त बनाने हेतु अखाड़ों की स्थापना की थी। आम जनमानस में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से ही उन्होंने पर्वों को चुना। उस दौर में भी इन पर्वों पर सामान्य गृहस्थों के साथ-साधु संत भी तीर्थों नदियों में स्नान किया ही करते थे।

अखाड़े अपने-अपने शंकराचार्यों को लेकर हाथी घोड़े और गाजे बाजे के साथ जाते थे नहाने (Shahi Snan history)

 प्राप्त जानकारी के मुताबिक विद्वानों का मानना है कि आदि शंकर ने शंकराचार्य को और शक्तिशाली दिखाने के लिए उनके साथ अखाड़ों को भी जोड़ दिया। अखाड़े अपने-अपने शंकराचार्यों को लेकर हाथी घोड़े और गाजे बाजे के साथ नहाने जाते थे। बता दें कि शैव और वैष्णव मतों को मानने वालों के अखाड़े भी अलग अलग थे। बीतते समय के साथ-साथ उनमें आपसी प्रतिस्पर्धा रहने लगी। खास तौर से प्रमुख पर्वों पर महास्नान (Shahi Snan history) के लिए पहले जाने को लेकर दोनो मतावलंबियों में संघर्ष होने लगा। हरिद्वार कुंभ में 1761 में दोनों मत के अखाड़ों में पहले स्नान करने को लेकर भयंकर लड़ाई होनी लगी। दोनों ओर से काफी खून खराबा होने लगा। इस खून खराबे को रोकने के लिए ही चित्रकूट के बाबा रामचंद्र दास ने नासिक कुंभ के दौरान पेशवा की अदालत में अर्जी लगाई। साल 1801 में पेशवा ने इस पर फैसला दिया और महास्नान को शाही स्नान का नाम दिया। और उनके कुंभ में प्रवेश को पेशवाई कहा।  

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पेशवा ने ये भी तय कर दिया था कि अखाड़े किस क्रम से जाएंगे स्नान (Shahi Snan history)

जानकारी के मुताबिक उस दौर के पेशवा ने ये भी तय कर दिया था कि अखाड़े इस क्रम से स्नान (Shahi Snan history) के लिए जाएंगे कि जो नासिक में सबसे आगे गया होगा, वो अगली जगह लगने वाले कुंभ में पीछे हो जाएगा। जबकि नासिक में पीछे रहने वाला अखाड़ा फिर आगे रहेगा। गौरतलब हो कि देशभर में चार स्थानों पर कुंभ लगते हैं। इस तरह से चक्रानुक्रम से सभी अखाड़े आगे पीछे चलते हैं ताकि किसी तरह का कोई वाद-विवाद न हो। महत्वपूर्ण बात यह कि व्यवस्था के अनुसार अब भी अखाड़े आगे और पीछे चलते हैं। हालांकि बाद में इसमें सुधार कर सभी अखाड़ों के लिए अलग अलग समय और स्नान करने की मियाद भी तय की गई। फिर भी किसी तरह का कोई विवाद हो जाने की स्थिति में परिषद ही फैसला देती है। महाकुम्भ या कुम्भ के दौरान अखाड़ा परिषद अपना शेड्यूल प्रशासन को सौंप देता है। प्रशासन उसी के मुताबिक व्यवस्था करता है। बता दें कि स्नान के लिए चल रहे दल में सबसे आगे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर का रथ होता है। उनके पीछे महामंडलेश्वर, श्री महंत, महंत, कोतवाल और थानापति वगैरह अखाड़ों के दूसरे ओहदेदार अपने रैंक और स्थिति के मुताबिक क्रम से चलते हैं। ध्यान देने वाली बात यह कि प्रशासन पहले से ही इस जुलूस का मार्ग तय कर देता है।। इस दौरान मार्ग के दोनो ओर बैरिकेड्स के बाहर खड़े होकर श्रद्धालु संतों की चरण धूलि माथे से लगाते हैं। 

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