Turkey-India relations: क्या एर्दोगन ने कश्मीर पर बदला अपना रुख, UN में क्यों नहीं बोला तुर्की?

Turkey-India relations

नई दिल्ली से लेकर अंकारा तक की राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एक नई हवा बह रही है। तुर्की-भारत रिश्ते (Turkey-India relations) अब नए मोड़ पर आ गए हैं। हाल ही में UN की बैठक में तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर चुप्पी साध ली जो कि पिछले कई सालों से नहीं देखा गया था। ये बदलाव कई लोगों को हैरान कर रहा है। आइए समझते हैं कि आखिर ये नया मोड़ क्यों आया और इसका क्या मतलब हो सकता है।

तुर्की का नया रुख: UN में कश्मीर पर खामोशी

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने इस बार UN में बोलते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया। ये बात इसलिए खास है क्योंकि पिछले पांच साल से वो लगातार इस मुद्दे को उठा रहे थे। 2019 में जब भारत ने कश्मीर में बड़ा बदलाव किया था तब से तुर्की पाकिस्तान के साथ खड़ा था। लेकिन इस बार उन्होंने चुप रहकर सबको चौंका दिया। ये बदलाव कई वजहों से हो सकता है। सबसे बड़ी वजह ये हो सकती है कि तुर्की अब BRICS ग्रुप में शामिल होना चाहता है। BRICS एक ऐसा ग्रुप है जिसमें बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं जैसे भारत चीन और रूस। तुर्की को लगता है कि अगर वो इस ग्रुप का हिस्सा बन जाता है तो उसे बहुत फायदा होगा।

BRICS की चाहत: तुर्की की नई रणनीति

तुर्की के लिए BRICS में शामिल होना बहुत बड़ी बात होगी। इससे उसकी अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी और दुनिया में उसकी ताकत बढ़ेगी। लेकिन BRICS में शामिल होने के लिए उसे सभी मौजूदा सदस्यों का समर्थन चाहिए जिनमें भारत भी एक अहम सदस्य है। शायद इसीलिए तुर्की ने अपना रुख बदला है और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चुप रहने का फैसला किया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी कहा है कि वो चाहते हैं कि एर्दोगन अगले महीने होने वाली BRICS मीटिंग में आएं। ये बताता है कि तुर्की को BRICS में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अगर तुर्की BRICS का सदस्य बन जाता है तो वो इस ग्रुप का पहला NATO देश सदस्य होगा जो कि एक बड़ी बात होगी।

भारत-तुर्की संबंधों का नया अध्याय

तुर्की का ये नया रुख भारत और तुर्की के रिश्तों में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच तनाव था खासकर कश्मीर के मुद्दे पर। लेकिन अब लगता है कि दोनों देश एक-दूसरे से नजदीकियां बढ़ाना चाहते हैं। इस बदलाव से भारत को भी फायदा हो सकता है। तुर्की एक अहम देश है जो यूरोप और एशिया के बीच एक पुल की तरह है। अगर भारत और तुर्की के रिश्ते अच्छे होंगे तो दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ सकता है। इससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी।

Turkey-India relations में ये नया मोड़ कई मायनों में महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच पुराने मतभेदों को दूर करने और नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का ये एक सुनहरा मौका हो सकता है। व्यापार तकनीकी सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में दोनों देश मिलकर काम कर सकते हैं।

आगे की राह: चुनौतियां और अवसर

हालांकि ये बदलाव सकारात्मक लग रहा है लेकिन इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं। तुर्की अभी भी पाकिस्तान का करीबी दोस्त है और उसके साथ उसके पुराने रिश्ते हैं। ऐसे में भारत के साथ संतुलन बनाना तुर्की के लिए मुश्किल हो सकता है। दूसरी तरफ ये एक बड़ा मौका भी है। अगर दोनों देश मिलकर काम करें तो वो कई वैश्विक चुनौतियों से निपट सकते हैं। जलवायु परिवर्तन आतंकवाद और आर्थिक विकास जैसे मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने से दोनों देशों को फायदा होगा।

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