जनसंख्या किसी भी देश की न सिर्फ प्रगति बल्कि उसकी भौगोलिक स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां की जनसंख्या बेहद कम है और कई ऐसे देश भी हैं जहां जनसंख्या बहुत ही ज्यादा है। वैसे भी जनसंख्या देश हित के लिहाज से जरूरी है, बशर्ते वो मर्यादित हो। अमर्यादित होने पर कई तरह की समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। कारण यही जो कई ऐसे देश हैं, जो बढ़ती जनसंख्या का दंश झेल रहे हैं। उन्हीं देशों में एक देश है भारत। बात करें भारत की, तो भारत में बढ़ती आबादी एक चिंता का विषय है।
अल्पसंख्यकों की आबादी चीते की रफ़्तार की तरह रही है बढ़
चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, इसलिए यह चिंता अधिक बड़ी और व्यापक दिखाई देती है। इसके पीछे का कारण यह कि भारत में रह रहे बहुसंख्यकों की संख्या साल दर साल घटती जा रही है और अल्पसंख्यक समाज को कि वास्तव में अल्पसंख्यक रहा नहीं, उसकी आबादी चीते की रफ़्तार से बढ़ रही है। एक तरफ बहुसंख्यक घटता जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरह अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक होने की कगार पर है। ये हम नहीं कर रहे हैं कि भारत में हिंदुओं की जनसंख्या घट गई है। बल्कि प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद ने 1950 और 2015 के बीच यानी 65 साल के जनसंख्या में हुए बदलावों पर गहन अध्ययन किया है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 1950 और 2015 के बीच की अवधि में भारत में मुस्लिम आबादी में 43.15% की वृद्धि हुई है।
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मुस्लिम आबादी करीब 43 प्रतिशत है बढ़ी
दरअसल, रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 1951 से हिंदुओं की आबादी में लगभग 8 प्रतिशत की कमी आई है और मुस्लिम आबादी करीब 43 प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिंदुओं की जनसंख्या हिस्सेदारी में 1950 और 2015 के बीच 7.8% की तेजी से गिरावट आई है। जबकि ईसाइयों में 5.38%, सिखों में 6.58% और बौद्धों में मामूली वृद्धि देखी गई है। रिपोर्ट की माने तो जहां एक ओर भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी हिस्सेदारी कम हुई है,तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध और सिखों सहित अन्य अल्पसंख्यकों की जनसंख्या बढ़ी है। हालांकि, जैन और पारसियों की संख्या में कमी आई है।
हिंदू अपने ही देश में हो जाएगा अल्पसंख्यक
कहने की जरूरत नहीं कि जिस तरह से हिंदुओं की आबादी लगातार कम हो और मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। एक दिन ऐसा आएगा, जब हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा और मुस्लिम बहुसंख्यक। कारण यह कि आज भी जागरूकता की कमी के चलते अल्पसंख्यक समाज ऊपर वाले की देन मानकर धड़ल्ले से बच्चे पैदा कर रहा है। ऐसा नहीं है कि सभी ऐसे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद सिर्फ उंगलियों की गिनती इतनी ही है। अधिकतर लोग परिवार नियोजन के भी खिलाफ हैं। यही नहीं, वो जनसंख्या नियंत्रण के भी खिलाफ हैं। वजह यही, जो वो आये दिन सरकार पर जनसंख्या नियंत्रण बिल को नहीं लाने का दबाव बनाते रहते हैं। यही नहीं, उनके द्वारा समान नागरिकता संहिता का भी विरोध किया जाता है।
पड़ोसी मुल्कों में बड़ी है बहुसंख्यकों की आबादी
खैर, नजर डालें भारत के अन्य पड़ोसी मुल्कों पर जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं, तो बांग्लादेश की बहुसंख्यक आबादी में 18.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। ठीक इसी तरह पाकिस्तान में 3.75 फीसदी और अफगानिस्तान में 0.29 फीसदी बहुसंख्यक आबादी में वृद्धि हुई है। रही बात मालदीव की, तो उसकी बहुसंख्यक आबादी में 1.47 फीसदी की गिरावट देखी गई है। भारत के दो और पड़ोसी देश, भूटान और श्रीलंका, जहां बौद्ध धर्म के लोगों जो कि बहुसंख्यक हैं, की आबादी में इजाफा हुआ है। एक तरफ भूटान में 17.6 फीसदी तो दूसरी तरफ श्रीलंका में 5.25 फीसदी उनकी बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है।
भारत में कभी अल्पसंख्यकों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया गया
दुनिया के अधिकतर देशों में बहुसंख्यक आबादी में वृद्धि होती रही है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यकों की आबादी में इजाफा हुआ है। कभी पाकिस्तान में 18 प्रतिशत हिंदू रहा करते थे, जो आज 1.18 प्रतिशत पर सिमट गए हैं। यही हाल बांग्लादेश का है, कभी वहां 24 प्रतिशत हिंदू आबादी हुआ करती थी, जो 8.2 प्रतिशत पर सिमट गई है। एक तरफ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी अल्पसंख्यक यानि कि हिंदू विलुप्त हो रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी में दिन दुगनी, रात चौगुनी वृद्धि हो रही है। कारण यह कि भारत में कभी अल्पसंख्यकों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया गया। इसकी गवाही आंकड़े खुद ही चिल्ला-चिल्ला कर दे रहे हैं।
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