क्यों होती है चुनावों में उम्मीदवारों की जमानत जब्त? किस कंडीशन में दी जाती है वापस

उम्मीदवारों

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। ऐसे में हर साल देश के किसी ना किसी कोने में कोई ना कोई चुनाव होता ही रहता है। चुनाव कोई भी हो, प्रत्याशियों की हार-जीत मतदान पर ही निर्भर करती है। अब वो चाहे चुनाव प्रधानी का हो यह विधायक का या फिर सांसद का। जिसे सबसे अधिक वोट मिलते हैं, जीत उसीकी सुनिश्चित होती है। खैर, यह तो हुई हार जीत की बात। लेकिन अक्सर चुनावों के दौरान एक बात सुनाई देती है कि फलां पार्टी के उम्मीदवार की जमानत जप्त हो गई, अथवा फलाने अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।  निश्चित ही आप सभी ने इस तरह की चर्चा चुनावी नतीजों के दौरान जरूर सुनी होगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यह जमानत क्या होती है और कैसे किसी की जमानत जब्त हो जाती है। क्या है इसके पीछे का चुनावी गणित। 

नामांकन पत्र दाखिल करते समय चुनाव आयोग में जमा करनी पड़ती है राशि 

आपको बता दें चुनाव लड़ने के लिए राशि निर्धारित की होती है, जिसे नामांकन पत्र दाखिल करते समय चुनाव आयोग में जमा करना पड़ता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उम्मीदवार किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित है या फिर निर्दलीय है। वो चाहे ग्राम पंचायत के चुनाव हों या फिर विधानसभा के या फिर सांसद के ही चुनाव क्यों न हों। प्रत्येक चुनाव में जमानत के तौर पर अलग-अलग राशि तय है। और इस तय राशि को हर उम्मीदवार को चुकानी होती है। 

ग्राम पंचायत के चुनाव से लेकर राष्ट्रपति के चुनाव की जमानत की राशि तय है

आपको बता दें कि ‘रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951‘ में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए जमानत राशि का जिक्र किया गया है। जबकि राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जमानत राशि का जिक्र ‘प्रेसिडेंट एंड वाइस प्रेसिडेंट इलेक्शन एक्ट, 1952‘ में है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जनरल कैटेगरी और SC/ST वर्ग के प्रत्याशियों के लिए अलग-अलग जमानत राशि तय की गई। इसके अलावा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के इलेक्शन में सभी कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए एक तय राशि होती है।

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चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशियों को जमा करनी होती है जमानत राशि

विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग से ताल्लुक रखने वाले किसी भी उम्मीदवार को बतौर जमानत 10 हजार रुपये चुनाव आयोग में जमा करनी होती है। जबकि विधायकी लड़ने वाले एससी/एसटी वर्ग के उम्मीदवार को सिर्फ 5 हजार जमा करना होता है। तो वहीं, लोकसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के प्रत्याशी को 25 हजार तो वहीं एससी/एसटी वर्ग के उम्मीदवार को सिर्फ 12,500 रुपये जमानत के तौर पर चुनाव आयोग में जमा करने होते हैं। ठीक इसी तरह ग्राम पंचायत के चुनाव से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव की जमानत की राशि तय है। 

कैसे किसी उम्मीदवार की जमानत होती है जब्त

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि कब और कैसे किसी उम्मीदवार की जमानत जब्त होती है? तो आपको बता दें कि किसी भी चुनाव में उम्मीदवारों की जमानत जब्त न हो इस हेतु उन्हें इलेक्शन में डाले गए कुल वैलिड वोटों की संख्या में से कम से कम 1/6 वोट से अधिक हासिल करने होते हैं। अब इसे एक आसान उदारहण से समझते हैं। मान लीजिए लोकसभा की किसी सीट पर कुल एक लाख वोट पर पड़े। ऐसे में एक लाख वोट का 1/6 हिस्सा अर्थ है, 16,666 वोट। यानी कि उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने के लिए 16,666 पाने ही होंगे। इसका अर्थ है, यदि किसी उम्मीदवार को 1/6 से कम वोट मिलता है, तो ऐसे में उसकी जमानत जब्त हो ही जानी है। और नियमानुसार जमानत जब्त होने के बाद उसके द्वारा भरी राशि को चुनाव आयोग अपने पास रख लेता है। 

किस स्थिति में जमानत की राशि लौटा दी जाती है?

चुनाव में पड़े कुल वोटों की संख्या में से 1/6 से ज्यादा मत हासिल करने पर जमानत राशि लौटा दी जाती है। यही नहीं, चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी को भी उसकी जमानत राशि वापस कर दी जाती है। भले ही उसे 1/6 से कम ही वोट क्यों न मिले हो। इसके अलावा, वोटिंग से पहले अगर यदि उम्मीदवार की मौत हो जाए तो, ऐसी स्थिति में राशि उसके परिजनों को लौटा दी जाती है। नामांकन रद्द होने या अथवा वापस लेने की स्थिति में उम्मीदवार को उसकी जमानत राशि लौटा दी जाती है।

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