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यहां BJP में फूटा बगावत का बम, नेताओं ने लगा दी इस्तीफों की झड़ी, इन 27 सीटों पर भारी विरोध

भाजपा  (BJP) द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होने के साथ ही पार्टी के अंदर बगावत तेज हो गई है। टिकट न मिलने से नाराज भाजपा के कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों के साथ दर्जनों पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है। सबसे ज्यादा असर 27 विधानसभा सीटों पर है। आलम यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अब चुनाव प्रचार रोक नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं। नेताओं को मनाने वालों में खुद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी शामिल हैं।  पार्टी छोड़ने वालों में ये नेता हैं शामिल  टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ने वालों में बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज, विधायक लक्ष्मण नापा, प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा, किसान मोर्चा अध्यक्ष सुखविंदर श्योराण, पीपीपी के स्टेट कोऑर्डिनेटर सतीश, सावित्री जिंदल, तरुण जैन समेत दर्जनों नेताओं ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। टिकट न मिलने पर नेताओं के टपक रहे आंसू  टिकट कटने पर कई नेता सरेआम रोते भी नजर आ रहे हैं। पूर्व मंत्री कविता जैन, राज्यमंत्री बिशंबर वाल्मीकि और पूर्व विधायक शशिरंजन परमार तो मीडिया के कैमरों के सामने ही रो दिये। अब कई नेता जहां अपने समर्थकों के साथ बैठक कर अगले कदम पर विचार-विमर्श कर रहे हैं तो कई ने पहले ही निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।   चार नेताओं को मिली नाराज नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी दूसरी तरफ, भाजपा (BJP) ने भी अब डैमेज कंट्रोल का प्रयास शुरू कर दिया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव सह प्रभारी बिप्लब कुमार देब ने पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में बैठक कर नाराज नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी चार वरिष्ठ नेताओं को सौंपी है। यह जिम्मेदारी प्रदेश संगठन महामंत्री फणींद्रनाथ शर्मा, प्रदेश महामंत्री डॉ. अर्चना गुप्ता, सुरेंद्र पूनिया और कृष्ण बेदी को मिली है। बिप्लब कुमार ने इस दौरान कहा कि टिकट न मिलने पर नेताओं में नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन जल्द ही इन नेताओं की नाराजगी दूर कर दी जाएगी।  टिकट वितरण को लेकर पार्टी में नहीं है विरोध  वहीं, पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज को मनाने पहुंचे सीएम नायब सैनी ने दावा किया कि टिकट वितरण को लेकर पार्टी में किसी प्रकार का विरोध नहीं है। सभी नेता और कार्यकर्ताओं एक दूसरे के संपर्क में रहकर प्रचार का कार्य कर रहे हैं। अगर कोई नाराज है तो उसे भी मना लिया जाएगा। भाजपा (BJP) एकजुट होकर चुनाव में उतरेगी।  #Election2024 #BJPNews #PoliticalCrisis #SeatOpposition #PartyInternalConflict #PoliticalDrama #IndianPolitics

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Sanjay Raut

CM फेस पर संजय राउत ने कर दी बड़ी भविष्यवाणी, बोले- Maharashtra की जनता के मन में…’

महाराष्ट्र (Maharashtra) विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन इससे पहले ही महाविकास अघाड़ी (MVA) में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर राजनीतिक घमासान छिड़ गया है। मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर एनसीपी (एसपी) के प्रमुख शरद पवार के बयान के बाद अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने भी बयान जारी कर अपना रुख साफ किया है।  विधानसभा चुनाव में एमवीए को मिल रहा है बहुमत  शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने मीडिया से बताचीत में कहा कि, महाराष्ट्र (Maharashtra) की जनता के मन में जो चेहरा है, उसे ही जनता अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। इसमें किसी को कोई शक नहीं है। इसके साथ पवार साहब की बात भी पूरी तरह से सही है। चुनाव में कौन सी पार्टी कितनी सीटें जीत रही यह बाद में तय होगा, लेकिन यह तो तय है कि विधानसभा चुनाव में एमवीए को बहुमत मिल रहा है। हम सभी का पहला काम है इस भ्रष्ट सरकार को सत्ता से हटाना। मुख्यमंत्री चेहरे पर चर्चा तो कभी भी हो सकती है।  शरद पवार ने क्या कहा था? दरअसल, एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने बीते बुधवार को मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर कहा था कि विधानसभा चुनाव से पहले एमवीए गठबंधन को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद किया जा सकता है। अभी हम बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनावी मैदान में उतरेंगे। पवार के इस बयान का महाराष्ट्र (Maharashtra) कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने भी सही बताते हुए समर्थन दिया है।  एमवीए गठबंधन के अंदर चल रहा है संघर्ष  बता दें कि, एमवीए गठबंधन में सीएम फेस को लेकर लंबे समय से रार है। शिवसेना (यूबीटी) उद्धव ठाकरे को सीएम फेस बनाकर चुनावी मैदान में उतारना चाह रही है। शिवसेना नेताओं का दावा है कि उद्धव ठाकरे पहले भी सीएम रह चुके हैं। उन्हें सीएम फेस बनाने से चुनाव जीतने में आसानी होगी। वहीं गठबंधन में शामिल कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) चुनाव जीतने के बाद सीटों की संख्या के आधार पर सीएम का चुनाव करना चाहती है। ये पार्टियां नहीं चाहती कि पहले से कोई चेहरा तय हो। जिसकी वजह से गठबंधन के अंदर तनातनी चल रही है।  #MaharashtraFuture #SanjayRaut #MaharashtraUpdate #PoliticalAnalysis #FutureOfMaharashtra #PublicSentiment #PoliticalTrends

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Rahul Gandhi

जानिए 2014 से लेकर अब तक, कितना बदले राहुल गांधी?

साल 2024 के लोकसभा चुनाव के समय से ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। एक तरह से कह लें कि अब वो देश की नब्ज को आसानी से समझने लगे हैं। उनके इस बदलते रूप और बिहेवियर को देखते हुए ही सैम पित्रोदा ने उन्हें राजीव गांधी से अधिक समझदार तक बता दिया। खैर, विगत कुछ दिनों से जिस तरह उन्होंने बेरोजगारी और जातिगत जनगणना से मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी है उसे देख, उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी स्मृति ईरानी ने भी यह माना है कि अब राहुल गांधी एक अलग तरह की राजनीति कर रहे हैं। वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से एकाएक सब कुछ बदलने लगा है। डीएमके के स्टालिन, आरजेडी के तेजस्वी से लेकर एनसीपी के शरद पवार सभी उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं।  बदले अंदाज में कुछ और करना चाह रहे हैं? दरअसल, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर को एक वीडियो शेयर किया था। जिसमें वे मार्शल आर्ट करते नजर आ रहे थे। इसे शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि कि जब हम भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर थे उस वक्त हर शाम जिउ जित्सु और एकिडो का अभ्यास करते थे। इस वीडियो के जरिए युवाओं को इन जेंटल आर्ट से परिचित कराना चाहते हैं। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है या फिर अपने बदले अंदाज में कुछ और करना चाह रहे हैं? कहीं ये 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी तो नहीं है? भारतीय राजनीति की उतनी नहीं थी समझ  खैर, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) जब पहली बार 2004 में राजनीति में आए तो उन्हें भारतीय राजनीति की उतनी समझ नहीं थी। शुरू-शुरू में वो बहुत मुखर नहीं थे। धीरे धीरे उनके विरोधियों ने उनका पप्पू कहकर मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया और शुरू में राहुल गाँधी ने इस छवि से बाहर आने के लिए अपनी तरफ़ से कोई कोशिश भी नहीं की। नतीजतन उनके नेतृत्व में कांग्रेस, बीजेपी से एक के बाद एक कई राज्य हारती चली गई। जिसके चलते उनकी छवि का बड़ा मजाक उड़ाया जाता था। बीजेपी वाले तो यहां कहते थे कि ‘हमारे तो तीन प्रचारक हैं, मोदी, अमित शाह और राहुल गाँधी।’ यही नहीं, कांग्रेस में भी शुरू के दिनों में उनके पीठ पीछे उनका मज़ाक उड़ाया जाता था। इस बीच उन्होंने अपनी छवि में बड़ा बदलाव किया। पप्पू वाली छवि से निकलने की कोशिश की। मीडिया के सामने किसी भी तरह की बयानबाजी करने से बचते नजर आये। परिणामस्वरूप हर बार नपे तुले शब्दों में अपनी बात रखते देखे गए। उन्हें पता है, विरोधी पार्टी का आईटी सेल नहा धोकर उनके पीछे पड़ा है। जरा सी भी चूक उनकी छवि को धूमिल कर देगी। उन्होंने हर संभव अपनी छवि को निर्भीक बनाने की कोशिश की।  तीसरी बार सत्ता में कांग्रेस की हो सकती थी वापसी  हालांकि न वो कभी कोई मंत्री बने और न ही मुख्यमंत्री। वो चाहते तो कभी भी मंत्री बन सकते थे। चाहते तो प्रधानमंत्री भी बन सकते थे। 2009 में उनके पास अच्छा मौका था। कोई विरोध भी नहीं करता। लेकिन कहते हैं, सोनिया स्वयं नहीं चाहती थी कि उनके परिवार का कोई भी शख्स अथवा वो स्वयं प्रधानमंत्री बनें। वजह, जिस तरह उन्होंने अपनी सास और पति को खोया, उस तरह किसी और को खोना नहीं चाहती थीं। कहीं कुछ ऊंच नीच कुछ हो जाता, तो कभी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाती। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी होती है कि कांग्रेस ने यदि 2009 में प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री बना दिया होता, तो 2014 में लगातार तीसरी बार सत्ता में कांग्रेस की वापसी हो सकती थी।  कांग्रेस कार्यकर्ता अब तेजी से सक्रीय होते जा रहे हैं खैर, 2014 में देश की जनता ने 30 साल बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया। परिणामस्वरूप नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। 2019 में दोगुनी ताकत से वे पुनः देश के पीएम बने। उनकी बनाई योजनाएं और विकास कार्य लोगों पर इस कदर हावी रहा कि कई राज्यों से कांग्रेस का सूफड़ा तक साफ़ हो गया। नतीजतन साल 2014 से 2019 तक कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई थी। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव अचानक से हुआ है। इसकी प्लानिंग 2019 के बाद से शुरू हो गई थी। भारत जोड़ो और न्याय यात्रा के दौरान भी उन्हें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग अंदाज में देखा गया था। कांग्रेस में जान फूंकने और जमीन पर अपनी पकड़ बनाने के लिए वो कभी राजमिस्त्रियों से मिलते, तो कभी ऑटो चालकों से। इसका असर यह कि सुस्त पड़े कांग्रेस कार्यकर्ता भी अब तेजी से सक्रीय होते जा रहे हैं।  2024 आते-आते नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में  देखी गई कमी नतीजतन 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने में सफलता हासिल कर पाई। खैर, इस बीच साल 2024 आते-आते नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी देखी गई। राम मंदिर उद्घाटन समारोह से उन्हें बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। परिणामस्वरूप 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 से ही संतोष करना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी को कोई लाभ नहीं हुआ।   खुद को देश के युवाओं से बेहतर तरीके से किया कनेक्ट  ध्यान देने योग्य बात यह कि पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने खुद को देश के युवाओं से बेहतर तरीके से कनेक्ट किया है। उन्होंने युवाओं से कनेक्ट करने के लिए सोशल मीडिया का भी बेहतर इस्तेमाल किया। युवाओं से जुड़े हर मुद्दों को उठाया। चाहे अग्निवीर का मसला हो या सरकारी नौकरी का मामला। इसका लाभ चुनाव में भी दिखा। युवा वोटर्स ने हाल के वर्षों में पहली बार बीजेपी से अधिक वोट कांग्रेस को दिया। राहुल की मोहब्बत की दुकान की भी लोगों ने सराहना की। इस दरम्यान राहुल गांधी ने अपने सलाहकार बदले और इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने कन्याकुमारी ने श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली। कांग्रेस तेलंगाना और कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बनाने में रही सफल  खैर, वो…

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Haryana Candidate List

Haryana Candidate List: BJP के 67 उम्मीदवार घोषित, सीएम नायब सैनी की बदली सीट, 27 नए चेहरों को मिला मौका

भाजपा (BJP) ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 67 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। 10 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए 40 सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं। भाजपा की इस लिस्ट में जहां दो पूर्व सांसदों, एक राज्यसभा सांसद और 27 नए चेहरों को जगह दी गई है, वहीं तीन मंत्रियों समेत आठ विधायकों का टिकट काटा गया है। भाजपा ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को इस बार कुरुक्षेत्र की लाडवा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। इससे पहले वे करनाल से विधायक चुने गए थे। पूर्व गृह मंत्री अनिल विज को अंबाला कैंट से बनाया है उम्मीदवार  भाजपा (BJP) ने अंबाला की मेयर और पूर्व मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्तिरानी शर्मा को कालका से और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत और राज्यसभा सांसद किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम सीट से टिकट दिया है। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को पंचकूला से, कृषि मंत्री कंवरपाल गुर्जर को जगाधरी से, मंत्री जेपी दलाल को लोहारू से, मंत्री मूलचंद शर्मा को बल्लभगढ़ से, मंत्री कमल गुप्ता को हिसार से, मंत्री असीम गोयल को अंबाला शहर, मंत्री सुभाष सुधा को थानेसर से, मंत्री महिपाल ढांडा को पानीपत ग्रामीण से और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज को अंबाला कैंट से उम्मीदवार बनाया है।  3 मंत्रियों समेत 6 विधायकों का कटा टिकट भाजपा (BJP) ने इस बार अपने तीन मंत्रियों और आठ विधायकों को टिकट नहीं दिया है। टिकट न पाने वालों में ऊर्जा मंत्री रणजीत चौटाला, खेल मंत्री संजय सिंह, मंत्री विशंभर वाल्मीकि, विधायक दीपक मंगला, नरेंद्र गुप्ता,  सुधीर सिंगला, सीताराम यादव, संदीप सिंह और लक्ष्मण नापा को टिकट नहीं दिया है। इसके अलावा भाजपा ने उन उम्मीदवारों को भी टिकट नहीं दिया है, जो दो बार चुनाव में हार चुके हैं।  टिकट बंटवारे में सभी वर्गों को मिली है जगह  भाजपा (BJP) के 67 उम्मीदवारों वाली पहली लिस्ट में सामान्य वर्ग के 40 उम्मीदवार हैं। इनमें 13 जाट, 9 ब्राह्मण,  8 पंजाबी, 5 वैश्य, 2 बिश्नोई, 1 जट सिख और 1 रोड़ जाति से उम्मीदवार है। वहीं, ओबीसी वर्ग के 14 लोगों को टिकट मिला है। इनमें 5 गुर्जर और 5 अहीर के अलावा कांबोज, कश्यप, कुम्हार और सैनी जाति से 1-1 उम्मीदवार हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति के 13 लोगों को टिकट मिला है।  #NayabSaini #BJP67Candidates #HaryanaPolls #HaryanaPolitics #CMSeatChanged #BJPNewFaces #HaryanaNews #Election2024

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Caste Census

Caste Census: एक जटिल समस्या, जिसका निवारण नहीं है आसान

भारत में जाति जनगणना (Caste Census) का मुद्दा कई वर्षों से तीव्र बहस और विवाद का विषय रहा है। जबकि समर्थक तर्क देते हैं कि सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समझने और दूर करने के लिए यह आवश्यक है, विरोधियों का तर्क है कि यह जाति विभाजन को बढ़ा सकता है और समानता की दिशा में प्रयासों को कमजोर कर सकता है। जाति जनगणना का मुद्दा एक जटिल है जिसमें कोई आसान उत्तर नहीं है। जबकि समर्थक तर्क देते हैं कि यह सामाजिक असमानताओं को समझने और दूर करने के लिए आवश्यक है, विरोधी इसके संभावित नकारात्मक परिणामों के बारे में चिंताएं उठाते हैं। यह बहस आने वाले वर्षों में जारी रहने की संभावना है, जिसका भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। ऐतिहासिक संदर्भ जाति जनगणना (Caste Census) की अवधारणा भारत के लिए पूरी तरह नई नहीं है। अतीत में, औपनिवेशिक अधिकारियों ने प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए जाति-आधारित गणनाएँ की थीं। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद, भारत के संविधान ने अछूतता को समाप्त कर दिया और समानता को बढ़ावा दिया, जिससे जाति को वर्गीकरण के प्राथमिक साधन के रूप में उपयोग में गिरावट आई। जाति जनगणना के पक्ष में तर्क जाति जनगणना (Caste Census) के समर्थक तर्क देते हैं कि यह कई कारणों से आवश्यक है: जाति जनगणना के विरोध में तर्क जाति जनगणना (Caste Census) के विरोधी कई चिंताएं उठाते हैं: राजनीतिक परिदृश्य जाति जनगणना (Caste Census) पर बहस राजनीतिक कारकों से प्रभावित रही है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गोपनीयता और संभावित सामाजिक अशांति का हवाला देते हुए जाति जनगणना करने के लिए अनिच्छुक रही है। हालांकि, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों से ऐसी जनगणना करने के लिए बढ़ता दबाव रहा है। जाति जनगणना के संभावित निहितार्थ जाति जनगणना (Caste Census) के संभावित निहितार्थ दूरगामी हैं। इससे सामाजिक असमानताओं की बेहतर समझ हो सकती है और लक्षित हस्तक्षेप की सुविधा मिल सकती है। हालांकि, यह जाति तनाव को बढ़ा सकता है और सामाजिक सामंजस्य की दिशा में प्रयासों को कमजोर कर सकता है। बहस के परिणाम से भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। #CensusDebate #CasteSystem #IndianPolitics #CensusChallenges #CensusPolicy #CasteIssues #GovernmentCensus

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Lieutenant Governor

दिल्ली LG को मिली राष्ट्रपति की फुल पावर, अब किसी भी बोर्ड या अथॉरिटी का कर सकेंगे गठन

केंद्र की भाजपा सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) की पावर बढ़ा दी है। अब उपराज्यपाल के पास दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) और दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) जैसे बोर्ड एवं आयोग का गठन करने का पूरा अधिकार होगा। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना जारी कर बताया गया कि दिल्ली के उपराज्यपाल अब इस तरह के किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या वैधानिक निकायों में सदस्यों की नियुक्ति अपने विवेक अनुसार कर सकते हैं। इस फैसले के बाद अब दिल्ली की आप सरकार और केंद्र के बीच फिर से तकरार बढ़ने के आसार हैं।   उपराज्यपाल ने की दिल्ली नगर निगम के पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति गृह मंत्रालय ने दिल्ली के उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) की शक्ति बढ़ाने वाली यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 239 के खंड (1) के साथ जारी किया। अधिसूचना जारी होने के बाद ही उपराज्यपाल ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति कर दी। इससे पहले एमसीडी की मेयर शैली ओबेरॉय ने पीठासील अधिकारियों की नियुक्ति यह कहकर इंकार कर दिया था कि उनकी अंतरात्मा उन्हें इस तरह के ‘अलोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया’ में भाग लेने की अनुमति नहीं दे रही।  उपराज्यपाल के पास आ गई राष्ट्रपति की असीम शक्तियां  गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में बताया गया है कि, “दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 (1992 के 1) की तहत धारा 45डी के साथ संविधान के अनुच्छेद 239 के खंड (1) के अनुसरण में राष्ट्रपति निर्देश देती हैं कि दिल्ली के उपराज्यपाल (Lieutenant Governor), राष्ट्रपति के नियंत्रण के अधीन रहते हुए उनके अधिकारों और शक्तियों का उपयोग अगले आदेश तक कर सकते हैं। जिसके तहत दिल्ली के किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या किसी अन्य वैधानिक निकाय के गठन का फैसला उपराज्यपाल के पास होगा। चाहे उस प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या निकाय किसी भी नाम से पुकारा जाए।  भाजपा और आप के बीच बढ़ेगा टकराव  आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 239 संघ में राज्यक्षेत्रों के प्रशासन के बारे में विस्तार से बताया गया है। गृह मंत्रालय ने इसी अनुच्छेद का उपयोग कर राष्ट्रपति की शक्ति उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) को दी है। यह फैसला आने के बाद अब फिर से दिल्ली में सत्तारूढ़ आप पार्टी सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार के बीच टकराव शुरू होने की संभावना है। इससे पहले भी कई बार अधिकारों को लेकर दोनों पार्टियों के बीच टकराव हो चुका है।  #PresidentOrder #FullPowers #AuthorityFormation #BoardFormation #DelhiNews #PoliticalUpdate #DelhiAdministration

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Vinesh Phogat-Bajrang Punia

क्या Vinesh Phogat और Bajrang Punia दिखाएंगे हरियाणा विधानसभा में अपना दमखम?

हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां जोरो पर हैं। इस बीच रेसलर विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) और बजरंग पुनिया (Bajrang Punia) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की है। ऐसे में इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि बजरंग पुनिया को विधानसभा का टिकट मिल सकता है। इसके अलावा इस बात की भी चर्चा है कि विनेश फोगाट भी चुनावी दंगल में ताल ठोक सकती हैं। पार्टी से जुड़े करीबी सूत्रों की मानें तो विनेश, दादरी विधानसभा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं। राजनीति में आने को लेकर पहले भी कर चुकी हैं इशारा  अभी हाल ही में 27 अगस्त के दिन, हरियाणा के जींद में एक कार्यक्रम के दौरान राजनीति में आने को लेकर पूछे गए सवाल पर विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) ने कहा था कि “वह इसे लेकर दबाव में हैं। पहले अपने बुजुर्गों से इस बारे में सलाह-मशविरा करेंगी।”  इसके जवाब में विनेश ने आगे कहा कि “जब उनका मन स्थिर और साफ होगा तब वह सोचेंगी कि क्या करना है।” उनके इस बयान से कयास लगाए लाने लगे थे कि हो सकता है कि वो हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएं।  जाट बाहुल्य इलाके से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं बजरंग पुनिया?  सूत्रों के मुताबिक, बजरंग पूनिया (Bajrang Punia) ने कांग्रेस से बादली सीट की मांग की थी, लेकिन किसी कारणवश बात नहीं बन पाई। दरअसल, बादली सीट से कुलदीप वत्स कांग्रेस के मौजूदा विधायक हैं। वैसे भी ब्राम्हण आबादी वाले इस इलाके में कांग्रेस किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती। इसलिए ब्राम्हण नेता कुलदीप वत्स को दोबारा टिकट दिया गया है। बजरंग पुनिया को हरियाणा के किसी भी जाट बाहुल्य इलाके से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है।  आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की भी है सुगबुगाहट  इसके अलाव हरियाणा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की भी बात चल रही है। हालांकि अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। दोनों पार्टियां अपना नफा-नुकसान देख आगे चलकर गठबंध से संबंधित जानकारी साझा कर सकती हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस गठबंधन से कांग्रेस को कितना लाभ होता है।   #WrestlersInPolitics #HaryanaAssembly #SportsAndPolitics #Election2024 #PoliticalDebut #HaryanaPolitics #VineshBajrang

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Mamata Banerjee

बंगाल विधानसभा में पास हुआ यह बिल, अब दोषी को होगी फांसी या फिर सारी उम्र कटेगी जेल में

कोलकाता में ट्रेनी महिला डॉक्टर से रेप और हत्या मामले के बाद पश्चिम बंगाल की ममता सरकार (Mamata government) ने बड़ा फैसला किया है। ममता सरकार ने आज बंगाल विधानसभा में उसे विधेयक को पारित करवा लिया, जिसमें रेप जैसे मामलों में आरोपियों को मौत की सजा देने का प्रावधान है। इस बिल को अपराजिता महिला और बाल विधायक 2024 नाम दिया गया है। अब पश्चिम बंगाल में इसी कानून के तहत रेप के आरोपियों को सजा दी जाएगी। विधानसभा में चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) ने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताया।  36 दिन के अंदर दी जा सकेगी मौत अथवा आजीवन कारावास की सजा  इस विधेयक की बड़ी बात यह कि इससे न सिर्फ महिलाओं को संरक्षण दिया गया है, बल्कि बच्चों के साथ होने वाले अपराध को भी इसी विधेयक में शामिल किया गया है। इस बिल के अंदर कई ऐसे बड़े और अहम पहलू को शामिल किया गया है, जिससे महिलाओं और बच्चों को दुष्कर्म और यौन अपराधों के मामले में पूरी सुरक्षा मिल सके। बिल में किए गए प्रावधान के मुताबिक रेप और हत्या जैसे मामलों में दोषी को चार्जशीट दायर करने के 36 दिन के अंदर मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी।  अपराजिता टास्क फोर्स का होगा गठन  सदन में विधेयक पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) ने कहा कि महिला और बच्चों से अपराध के दोषी को सख्त सजा मिलनी चाहिए। ऐसे मामलों में जांच को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए एक विशेष अपराजिता टास्क फोर्स का गठन भी किया जाएगा। जिससे दोषियों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जा सके। विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल, शिखा चटर्जी और शुभेंदु अधिकारी ने भी अपनी बात रखी।  एसिड अटैक पर भी आजीवन कारावास की सजा  बिल के अनुसार अगर किसी महिला पर एसिड अटैक होता है, तो उस मामले में भी दोषी को रेप की गंभीर श्रेणी के तहत आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। वहीं इस तरह के मामलों में अगर किसी व्यक्ति, संस्थान या फिर मीडिया द्वारा पीड़िता की पहचान उजागर की जाती है तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि, इस तरह का कानून पश्चिम बंगाल से पहले महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश भी लाने की कोशिश कर चुका है, लेकिन इन राज्यों का बिल सदन में पारित नहीं हो पाया।  #NewLaw #JusticeForAll #CriminalLaw #BengalNews #LegalUpdates #BengalBill #CrimeAndPunishment

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Yogi government

इस वजह से योगी सरकार ने लगाईं 2.44 लाख सरकारी कर्मचारियों की सैलरी पर ब्रेक

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार (Yogi government) ने एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने उन राज्य कर्मचारियों की अगस्त महीने की सैलरी रोक दी है, जिन्होंने अपनी संपत्ति का ब्यौरा समय पर नहीं दिया। यह फैसला 2.44 लाख कर्मचारियों को प्रभावित करेगा। आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझें। क्या है पूरा मामला? दरअसल, योगी सरकार (Yogi government) ने सभी राज्य कर्मचारियों को 31 अगस्त तक अपनी संपत्ति का पूरा ब्यौरा मानव संपदा पोर्टल पर देने को कहा था। इसमें उन्हें अपनी चल और अचल संपत्ति की जानकारी देनी थी। लेकिन कई कर्मचारियों ने इस निर्देश का पालन नहीं किया। नतीजतन, सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए ऐसे कर्मचारियों की सैलरी रोकने का फैसला किया। सरकार का रुख क्यों इतना सख्त? योगी सरकार (Yogi government) का मानना है कि संपत्ति का ब्यौरा देना पारदर्शिता के लिए जरूरी है। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह कदम ईमानदार कर्मचारियों को प्रोत्साहित करेगा। मुख्य सचिव ने 17 अगस्त को ही इस बारे में शासनादेश जारी कर दिया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि सभी कर्मचारियों को अपनी संपत्ति का खुलासा करना होगा। कितने कर्मचारियों ने दिया संपत्ति का ब्यौरा? उत्तर प्रदेश में कुल 846640 राज्य कर्मचारी हैं। इनमें से केवल 602075 कर्मचारियों ने ही अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है। यानी, लगभग 71% कर्मचारियों ने ही सरकार के निर्देश का पालन किया। बाकी 29% कर्मचारियों की सैलरी अब रोक दी गई है। किन विभागों के कर्मचारी रहे आगे-पीछे? संपत्ति का ब्यौरा देने में कुछ विभाग आगे रहे, जबकि कुछ पीछे। सैनिक कल्याण, कृषि, महिला कल्याण, खेल और ऊर्जा विभाग के कर्मचारियों ने सबसे ज्यादा जानकारी दी। वहीं, शिक्षा विभाग के कर्मचारी इस मामले में पिछड़ गए। उनमें से कई ने अभी तक अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। जब तक संपत्ति का ब्यौरा नहीं, तब तक सैलरी नहीं  योगी सरकार (Yogi government) का रुख साफ है, जब तक कर्मचारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं देंगे, तब तक उनकी सैलरी नहीं मिलेगी। हालांकि, कुछ विभागों ने और समय मांगा है। खासकर पुलिस विभाग ने त्योहारों और भर्ती परीक्षा के चलते अतिरिक्त समय की मांग की है। संभव है कि सरकार इस पर विचार करे और समय सीमा बढ़ाए। #GovernmentEmployees #UPGovernment #YogiAdityanath #UPNews #EmployeeSalary #GovernmentWorkers #UPPolitics

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हरियाणा चुनाव को लेकर Congress ने किया 49 सीटों पर मंथन, 34 नाम फाइनल, 15 होल्ड

हरियाणा विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के नाम तय करने को लेकर कांग्रेस (Congress) इलेक्शन कमेटी (सीईसी) ने बड़ी बैठक की है। इस बैठक में करीब 49 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की चर्चा हुई। बताया जा रहा है कि सीईसी ने लगभग 30 से 35 उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर लिए हैं। इन नामों की घोषणा इसी सप्ताह हो सकती है। सीईसी ने उम्मीदवारों का चयन उनकी जीत की संभावना के आधार पर की है, क्योंकि यही सबसे अहम फैक्टर रहेगा। इस बैठक में कई बार विधायक रह चुके विधायकों के प्रदर्शन पर भी चर्चा की गई।  सीईसी की मीटिंग में 49 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की चर्चा की गई हरियाणा कांग्रेस (Congress) प्रभारी दीपक बाबरिया ने बैठक की जानकारी देते हुए बताया कि, सीईसी की मीटिंग में 49 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की चर्चा की गई। इसमें से 34 उम्मीदवारों के नाम फाइनल हो गए हैं। इस लिस्ट में 22 सिटिंग विधायक भी शामिल हैं। वहीं 15 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम को अभी होल्ड पर रखा गया है। इन सीटों पर अब रिव्यू कमेटी चर्चा करेगी। दीपक बाबरिया ने बताया कि हम सभी उम्मीदवारों के नाम इसी सप्ताह जारी कर देंगे।  साफ छवि के नेताओं को ही कांग्रेस देगी टिकट  मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बैठक में टिकट की दावेदारी कर रहे नेताओं की छवि पर गहन चर्चा की गई है। बैठक में निर्णय लिया गया कि जिन उम्मीदवारों पर गंभीर आरोप हैं, उनकी जांच की जाएगी। अगर वे जांच में साफ छवि के निकलते हैं, तभी टिकट दिया जाएगा। ताकि यह संदेश दिया जा सके कि पार्टी अपराधियों के साथ नहीं है।  पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा अपनी पुरानी सीट से ही लड़ेंगे चुनाव  वहीं कांग्रेस (Congress) नेता टीएस सिंहदेव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि, “जब तक पार्टी अध्यक्ष हस्ताक्षर नहीं करेंगे, तब तक कुछ भी फाइनल नहीं होगा। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के एक बड़े नेता हैं, वे अपनी पुरानी सीट से ही चुनाव लड़ेंगे, बाकि नामों पर चर्चा चल रही है। इसके अलावा पूर्व भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह का नाम भी उचाना कलां से लगभग फाइनल हो चुका है। यह सीट उनके पिता बीरेंद्र चौधरी की पारंपरिक सीट रही है। वे यहां से कई बार विधायक रह चुके हैं। इस बैठक में विनेश फोगाट के नाम पर भी चर्चा की गई।” #PoliticalUpdates #Election2024 #CongressCandidates #HaryanaPolitics #CongressInHaryana #HaryanaCongress #ElectionNews

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