शिवभक्ति का पर्व, सावन मास चल रहा है । इस पावन दिन पर शिवलिंग का अभिषेक कर, शिव भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस साल सावन शिवरात्रि (Sawan Shivratri) व्रत 2 अगस्त से मनाई जा रही हैं। यह महिना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन भक्त भगवन शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और उपवास रखते हैं, ताकि उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त हो सके। सावन का महीना शिवजी को समर्पित होता है, और इस माह की शिवरात्रि को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। श्रद्धालु बेलपत्र, दूध, दही, शहद और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कर भगवान शिव से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
शिवरात्रि की कथा
प्राचीन समय की बात है, एक शिकारी अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जंगल में जानवरों का शिकार करता था। एक दिन, वह पूरा दिन जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। उसके परिवार का पेट उसी के माध्यम से भरता था, और वह बहुत परेशान हो गया। शाम होते-होते शिकारी थक गया और जंगल में एक सरोवर के पास जाकर बैठ गया। उसने सोचा कि कोई जानवर पानी पीने जरूर आएगा और उसे शिकार मिल जाएगा। खैर, शिकारी ने एक बेल के पेड़ की छांव में जाकर बैठने का निर्णय लिया। उसे यह ज्ञात नहीं था कि उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित है। जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा और इंतजार करने लगा, उसकी आशा पूरी हुई। थोड़ी ही देर में एक हिरनी सरोवर के पास पानी पीने आई। शिकारी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने तुरंत धनुष निकाला और हिरनी पर वार करने के लिए तैयार हो गया। लेकिन जैसे ही उसने धनुष खींचा, पेड़ के कुछ बेलपत्र नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गए।
हिरण ने मांगी अपनी जान की भीख
हिरनी ने खतरा भांपते ही शिकारी से प्रार्थना की, “मुझे मत मारो। मैं अपने बच्चों को अपने स्वामी के पास छोड़कर वापस आ जाऊंगी।” शिकारी पहले तो उसकी प्रार्थना को नजरअंदाज कर रहा था क्योंकि उसे अपने परिवार की भूख मिटानी थी।लेकिन हिरनी की ममता और करुणा से उसका दिल पिघल गया और उसने उसे जाने दिया। शिकारी ने सोचा कि वह वापस आएगी और वह उसे फिर शिकार कर सकेगा।
शिकारी ने बना लिया था मन ही मन मारने का इरादा
कुछ समय बाद, एक और हिरनी सरोवर के पास आई। शिकारी ने फिर से अपना धनुष तैयार किया, और इस बार भी पेड़ के पत्ते शिवलिंग पर गिर गए। अब शिकारी की दूसरी प्रहर की पूजा भी अनजाने में संपन्न हो गई। हिरनी ने शिकारी से फिर से दया की याचना की, लेकिन शिकारी उसे मारने का इरादा बना चुका था। हिरनी ने कहा कि जो व्यक्ति अपने वचन का पालन नहीं करता, उसके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। उसने वादा किया कि वह वापस आएगी, और शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।
इस तरह हुई तीसरे प्रहर की पूजा
दो हिरनियों को छोड़ने के बाद, शिकारी को चिंता सताने लगी कि आज उसका परिवार भूखा रहेगा। तभी एक हिरण वहां आया। शिकारी ने पहले की तरह धनुष उठाया और निशाना साधा। इस प्रक्रिया में फिर से कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए, और उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई। इस बार हिरण ने शिकारी से दया की याचना नहीं की, बल्कि उसने कहा कि उसे खुशी होगी कि वह किसी की भूख मिटा पाएगा। लेकिन उसने पहले अपने बच्चों को उनकी मां के पास छोड़ने की इच्छा जताई। शिकारी ने उस पर विश्वास किया और उसे भी जाने दिया।
शिकारी से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दिया आशीर्वाद
कुछ समय बाद, शिकारी ने देखा कि सभी हिरण उसके पास लौट आए हैं। इस बार उसने फिर से धनुष उठाया और उसकी चौथे प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई। अब उसकी शिव की उपासना पूर्ण हो गई थी, जिसके कारण उसका हृदय परिवर्तन हो गया। उसे इस बात का पछतावा हुआ कि वह इन निर्दोष जानवरों का शिकार कर अपने परिवार का पेट भरता था। उसने सभी हिरणों को वापस जाने को कह दिया। शिकारी के इस निर्णय से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उसे यश, वैभव और ख्याति का आशीर्वाद दिया।
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