China Missile Test: चीन की चालाकी या महज सैन्य अभ्यास? मिसाइल परीक्षण ने बढ़ाई भारत-चीन सीमा पर तनातनी!

चीन मिसाइल परीक्षण

चीन की सेना ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है जो भारत और चीन के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। चीन मिसाइल परीक्षण (China Missile Test) ने भारतीय सीमा के पास कराकोरम पठार में किया गया, जो कि लद्दाख के करीब है। यह खबर चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने दी है। इस परीक्षण में चीनी सेना ने एक क्रूज मिसाइल को हवा में ही मार गिराने का प्रयास किया। चीन मिसाइल परीक्षण (China Missile Test) का समय बेहद महत्वपूर्ण है। यह ठीक उसी दिन किया गया जब भारत और चीन के बीच बीजिंग में सीमा विवाद पर बातचीत हो रही थी। इससे साफ जाहिर होता है कि चीन एक तरफ बातचीत का दिखावा कर रहा है, और दूसरी तरफ अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन कर रहा है।

चीन की इस हरकत पर गौर करें

चीन के इस कदम को कई तरह से देखा जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत को एक संदेश देने की कोशिश है। चीन यह दिखाना चाहता है कि वह किसी भी तरह की मिसाइल को रोक सकता है, चाहे वह सबसोनिक हो या फिर हाइपरसोनिक। यह खासतौर पर भारत की ब्रह्मोस मिसाइल को ध्यान में रखकर किया गया हो सकता है, जो कि भारतीय सेना की एक महत्वपूर्ण हथियार है। दूसरी तरफ, कुछ लोगों का मानना है कि यह चीन की ओर से बातचीत में दबाव बनाने की एक चाल है। वह चाहता है कि भारत उसकी शर्तों पर राजी हो जाए। लेकिन क्या यह रणनीति काम करेगी? क्या भारत इस तरह के दबाव में आएगा? ये सवाल अभी बने हुए हैं।

यह परीक्षण चीन के नियमित सैन्य अभ्यास का हिस्सा है

चीन के फूदान विश्वविद्यालय के डेप्युटी डायरेक्टर लिन मिनवांग का कहना है कि यह परीक्षण चीन के नियमित सैन्य अभ्यास का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि चीन की सेना साल 2020 से ही तिब्बत के पठार पर अपने हथियारों और उपकरणों का परीक्षण कर रही है। लेकिन इस परीक्षण का समय और स्थान चुनना बेहद महत्वपूर्ण है।

मिसाइल परीक्षण के पीछे की रणनीति

चीन के इस मिसाइल परीक्षण के पीछे कई रणनीतिक कारण हो सकते हैं। सबसे पहले, यह भारत को यह दिखाने की कोशिश हो सकती है कि चीन किसी भी तरह के हमले से निपटने में सक्षम है। दूसरा, यह बातचीत में चीन की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास हो सकता है और तीसरा, यह क्षेत्र में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने का एक तरीका हो सकता है। चीनी सैन्य विश्लेषक सोंग झोंगपिंग ने इस परीक्षण को ‘ताकत की गारंटी’ के रूप में देखा है। उनका कहना है कि इससे बातचीत में चीनी वार्ताकारों को मदद मिलेगी। वे मानते हैं कि इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना था कि चीन हर तरह की मिसाइल को मार गिराने में सक्षम है।

भारत की प्रतिक्रिया का इंतजार

इस घटना के बाद सभी की नजरें भारत की प्रतिक्रिया पर टिकी हुई हैं। भारत इस मामले को किस तरह से देखता है और क्या कदम उठाता है, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या भारत भी कोई सैन्य प्रदर्शन करेगा या फिर कूटनीतिक तरीके से इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करेगा? भारत-चीन सीमा पर तनाव (India-China border tension) इस घटना के बाद और बढ़ सकता है। दोनों देशों के बीच 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पहले से ही तनाव है। गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद से दोनों देशों के हजारों सैनिक सीमा पर आमने-सामने तैनात हैं। इस बीच, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अमेरिका में चीन की पोल खोली है। उन्होंने कहा है कि शांति के बिना रिश्ते सुधार नहीं सकते। यह बयान चीन के इस मिसाइल परीक्षण के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

कूटनीतिक प्रयासों का महत्व

हालांकि तनाव बढ़ा है, लेकिन कूटनीतिक प्रयास भी जारी हैं। हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री के बीच रूस में एक बैठक हुई थी। इस बैठक में दोनों देश अपने रिश्तों को सुधारने पर सहमत हुए थे। लेकिन अब यह मिसाइल परीक्षण एक नया मोड़ ला सकता है। इस बीच, रूस के कजान में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन से पहले भारत और चीन के बीच बातचीत का दौर बढ़ गया है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार होता है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात भी हो सकती है। लेकिन इस मिसाइल परीक्षण ने इस संभावना पर संदेह के बादल छा दिए हैं।

चीन की रणनीति पर सवाल

चीन की इस हरकत ने उसकी रणनीति पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या चीन वाकई में रिश्ते सुधारना चाहता है या फिर वह सिर्फ दिखावा कर रहा है? क्या यह परीक्षण भारत को डराने की एक कोशिश है या फिर यह चीन के नियमित सैन्य अभ्यास का हिस्सा है? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिल सकते हैं। लेकिन एक बात तो साफ है कि इस घटना ने एक बार फिर से भारत-चीन संबंधों की नाजुकता को उजागर कर दिया है। दोनों देशों को अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे।

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