Aachar Sanhita: क्या होती है आचार संहिता और चुनावों में ही क्यों लगती है?

Aachar Sanhita

वर्तमान में महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा के चुनाव होने हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक तारीखों का ऐलान नहीं किया है। खैर, देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव तो होते ही रहते हैं। वो चुनाव चाहे विधानसभा के हों या फिर ग्राम प्रधान के। देश चुनावी माहौल में सराबोर रहता ही है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि चुनाव के दौरान अक्सर यह सुनने मिलता है कि देश में आचार संहिता लगी हुई है। या फिर विधानसभा चुनावों के चलते लगी फलां राज्य में आचार सहिंता। क्या आपने कभी सोचा भी है कि ये आचार संहिता अथवा कोड ऑफ कंडक्ट होता क्या है? और इसे चुनावों के दौरान ही क्यों लगाया जाता है? आखिर ऐसा क्या होता है इस दौरान जो आचार सहिंता लगा दी जाती है। इन सबका उत्तर हम क्रमानुसार जानने की कोशिश करेंगे। 

क्या होती है आचार संहिता

सबसे पहले समझते हैं कि आखिर आचार संहिता होती क्या है। एकदम सरल शब्दों में कहें तो आचार संहिता एक नियमावली है। जिसके तरह चुनाव आयोग कुछ शर्तों और नियमों को तय करता है ताकि निष्पक्ष रूप से चुनाव कराया जा सके। चुनाव आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं। यह प्रत्येक सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है कि चुनाव के दौरान वो उन नियमों का पालन करें। यदि बात करें इसकी परिभाषा की तो, भारत निर्वाचन आयोग, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन संसद और राज्य विधान मंडलों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन हेतु अपने सांविधिक कर्तव्यों के निर्वहन में केन्द्र तथा राज्यों में सत्तारूढ़ दलों और चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों द्वारा इसका अनुपालन सुनिश्चित करता है। साथ ही चुनाव आयोग यह भी सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन के दौरान अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो। 

इसे भी पढ़ें : इस तरह आप भी बना सकते हैं अपनी नई राजनीतिक पार्टी, जानें रजिस्ट्रेशन की पूरी प्रक्रिया   

कब से शुरू हुई आचार संहिता  

विधानसभा

आपको बता दें कि आदर्श आचार संहिता की शुरुआत साल 1960 में सबसे पहले केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी। जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताया गया था कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं। इलेक्शन कमीशन ने साल 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी राजनीतिक दलों को इसके बारे में अवगत कराया था। फिर साल 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से आचार संहिता की व्यवस्था लागू हुई। तब से अब तक नियमित रूप से इसका पालन किया जा रहा है। यही नहीं, समय-समय पर इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव होता रहा है। दरअसल, आचार संहिता कोई कानून द्वारा लाया गया प्रावधान नहीं है, यह सभी राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति से लागू एक व्यवस्था है। 

कब से कब तक प्रभावी रहती है आचार संहिता 

चुनाव आयोग द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनावी तारीखों की घोषणा करने के बाद ही आचार संहिता लागू हो जाती है। और यह निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक लागू रहती है। इसे आसान भाषा में समझें तो, चुनावी परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहती है। चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक दल, उम्मीदवार, सरकार और प्रशासन समेत चुनाव से जुड़े सभी लोगों पर इन नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी होती है। ध्यान देने वाली बात यह कि आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं। 

आचार संहिता में किन कामों पर होती है पाबंदी

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक चुनावों की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है। इसके लागू होते ही सत्ताधारी पार्टियां चुनाव प्रचार के लिए आधिकारिक शक्ति का उपयोग नहीं कर सकती। यानी वो किसी भी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए कतई नहीं कर सकतीं। यहां तक कि मतदाताओं और मतदान को प्रभावित करने वाले कार्यों पर रोक लगा दी जाती है। इस दौरान सरकार नई योजनाओं की घोषणा नहीं कर सकती। सरकार न तो भूमिपूजन कर सकती है और न ही लोकार्पण कर सकती है। यही नहीं, चुनाव प्रचार हेतु सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। प्रचार हेतु सरकारी गाड़ी और बंगले का उपयोग वर्जित होता है। इतना ही नहीं दीवारों पर लिखे गए पार्टी संबंधी नारों, होर्डिंग, बैनर वा पोस्टरों को हटा दिया जाता है।  

मतदान होने के 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित नहीं की जा सकती 

राजनीतिक

आचार संहिता लगने के बाद राजनीतिक दलों को रैली, जुलूस अथवा मीटिंग के लिए भी परमिशन लेनी होती है। इसके नियम इतने कड़े हैं कि धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जा सकता। बड़ी बात यह कि मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत नहीं दी जा सकती है। किसी भी चुनावी रैली में धर्म या जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे जा सकते। मंदिर, मस्जिद, चर्च या किसी अन्य पूजा स्थालों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रत्याशी या पार्टी पर निजी हमले नहीं किए जा सकते हैं। मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवा सकते हैं। मतदान के दिन और मतदान होने के 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित नहीं की जा सकती है। मतदान के दिन शराब की दुकानें बंद रहती हैं। वोटरों को शराब या पैसे बाँटने पर भी मनाही होती है। मतदान समापन के लिए निर्धारित घंटे से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना भी अपराध है।

क्या होता है आचार संहिता के उल्लंघन करने पर 

चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई नियम भी लागू हो जाते हैं। कोई भी राजनीतिक दल अथवा राजनेता इनकी अवहेलना नहीं कर सकता। नियमों के पालन में चुनाव आयोग राज्यों में सत्तारूढ़ दल और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों द्वारा इसका अनुपालन सुनिश्चित कराता है। इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन अपराध, कदाचार और भ्रष्ट आचरण यथा प्रतिरूपण, रिश्वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करना जैसी गतिविधियों को हर प्रकार से रोका जा सके। उल्लंघन के मामले मे उचित उपाय किए जाते हैं। अगर कोई इन नियमों का पालन नहीं करता है, अथवा उल्लघंन करते पाया जाता है, तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। यहां तक कि उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका तक जा सकता है या उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। और तो और दोषी पाए जाने पर प्रत्याशी को जेल भी जाना पड़ सकता है। 

क्या है इसका मुख्य उद्देश्य 

दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लागू करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है। इसी के तहत सरकार और प्रशासन पर कई अंकुश लग जाते हैं। ये संहिता सरकारों को नीतिगत निर्णयों की घोषणा से भी रोकती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि नेता या दल मतदाताओं को लुभा न सके।

 Latest News in Hindi Today Hindi news हिंदी समाचार

#CodeOfConduct #IndianElections #FairElections #ElectionCommission #PoliticalCampaign #ElectionRegulations #ElectionLaws

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *